गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 12
चाणूर आदि मल्ल, कंस के छोटे भाइयों तथा पंजन चदैत्य के पूर्वजन्मगत वृतान्त का वर्णन बहुलाश्व ने पूछा– चाणूर आदि जो मल्ल थे, वे पूर्वजन्म में कौन थे, जो यहाँ मथुरापुरी में आये थे ? अहो ! उनका कैसा सौभाग्य है कि साक्षात् श्रीकृष्ण-चन्द्र के साथ उन्हें युद्ध का अवसर मिला। नारदजी ने कहा– राजन् ! पूर्वकाल में अमरावतीपुरी में उतथ्य नाम से प्रसिद्ध महामुनि निवास करते थे। उनके पाँच पुत्र हुए, जो कामदेव के समान कान्तिमान थे। उन लोगों ने विद्या, स्वाध्याय और जप छोड़कर मद से उन्मत् हो राजा बलि के यहाँ जाकर प्रतिदिन मल्ल्युद्ध की शिक्षा लेनी आरम्भ की। अपने पुत्रों को ब्राह्मणोचित कर्म से सर्वथा भ्रष्ट, वेदाध्ययन से रहित तथा मदमत्त हुआ देख मुनिश्रेष्ठ उतथ्य ने रोषपूर्वक उनसे कहा। उतथ्य बोले– शम, दम, तप, शौच, क्षमा, सरलता, ज्ञान, विज्ञान तथा आस्तिकता- ये ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं। शौर्य, तेज, धैर्य, दक्षता, युद्धभूमि में पीठ न दिखाना, दान तथा ऐश्वर्य- ये क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं। कृषि, गोरक्षा और वाणिज्य- ये वैश्य के स्वभावजकर्म हैं तथा सेवात्मक कर्म शूद्र के लिये भी स्वाभाविक है। दुर्जनो ! तुम लोग ब्राह्मण के पुत्र होकर भी ब्राह्मणोचित कर्म से दूर रहकर क्षत्रियोचित मल्ल युद्ध का कार्य कैसे करते हो ? अत: तुम लोग भारत भूमि पर मल्ल हो जाओ और असुरों के संग से शीघ्र ही दुर्जन बन जाओ। नारदजी कहते हैं– राजन् ! वे उतथ्य के पुत्र ही पृथ्वी पर मल्लों के रूप में उत्पन्न हुए। नरेश्वर ! उन्होंने श्रीकृष्ण के शरीर का स्पर्श करने मात्र से परम मोक्ष प्राप्त कर लिया। इस प्रकार मैंने चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल- इन मल्लों के पूर्वचरित्र का वर्णन किया, अब और क्या सुनना चाहते हो ? बहुलाश्व ने पूछा– मुने ! कंस के छोटे भाई जो कंक, न्यग्रोध आदि आठ योद्धा थे, वे सब पूर्वजन्म में कौन थे ? जो कि परम मोक्ष को प्राप्त हुए, यह बताइये !। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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