गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 56
राजा द्वारा यज्ञ में विभिन्रन बन्धु-बान्धवों को भिन्न-भिन्न कार्यों में लगना, श्रीकृष्ण का ब्राह्मणों के चरण पखारना, घी की आहुति से अग्निदेव को अजीर्ण होना, यज्ञपशु के तेज का श्रीकृष्ण में प्रवेश, उसके शरीर का कर्पूर के रूप में परिवर्तन, उसकी आहुति और यज्ञ की समाप्ति पर अवभृथ स्नान श्रीगर्गजी कहते हैं- महाराज ! महात्मा राजा उग्रसेन के यज्ञ में उनकी परिचर्या में प्रेम के बंधन से बंधे हुए समस्त बन्धु-बान्धव लगे रहे। उन यादवराज से विभिन्न कर्मों में सगे- संबंधी भाई-बंधुओं को लगाया। भीमसेन रसोईघर के अध्यक्ष बनाये गये। धर्मराज युधिष्ठिर को धर्मपालन संबंधी कर्म में नियुक्त किया गया। राजा ने सत्पुरुषों की सेवा शुश्रूषा में अर्जुन को, विभिन्न द्रव्यों को प्रस्तुत करने में नकुल को, पूजन कर्म में सहदेव को और धनाध्यक्ष के स्थान पर दुर्योधन को नियुक्त किया। दानकर्म में दानी कर्ण को, परोसने के कार्य में द्रौपदी को तथा रक्षा के कार्य में श्रीकृष्ण के अठारह महारथी पुत्रों को लगाया। तत्पश्चात भूपाल ने युयुधान, विकर्ण, हदीक, विदुर, अक्रूर और उद्धव को भी अनेक कर्मों में लगाकर श्रीकृष्ण से पूछा- ‘देव ! आप कौन-सा कार्य अपने हाथ में लेंगे? उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा- ‘राजन ! मैं तो ब्राह्मणों के चरण पखारने का कार्य करूँगा। इन्द्रप्रस्थ में भी मैंने यही काम किया था’। यह सुनकर ब्रह्मा आदि देवता और भूतल के मनुष्य हंसने लगे। श्रीगर्ग जी कहते हैं- राजन ! ऐसा कहकर साक्षात भगवान श्रीकृष्ण ने तपस्वी ॠषि मुनियों के चरण धोकर उन सबको यथायोग्य आसनों पर बिठाया। नये-नये वस्त्र पहन, बारह तिलक लगा, दिव्य आभूषणों से विभूषित हो नाना मतो की मालाएं – अनेक प्रकार की कलाओं से निर्मित पुष्पहार धारण किये। अनेक आसनों पर बैठे हुए वे ब्राह्मण पान के बीडे़ चबाकर यज्ञमण्डप में देवताओं के समान शोभा पाने लगे। तदन्तर विभिन्न वस्तुओं के प्रयोजन वाले अर्थी, भिक्षुक, विरक्त और भूखे- ये सभी दूर देश से आकर वहाँ याचना करने लगे- ‘नरेश्वर ! हमें अन्न दो, अन्न दो, अन्न दो। उपानह, पात्र, वस्त्र तथा कम्बल दो’। मुनिवृन्दों तथा राजाओं से भरे हुए उग्रसेन के उस यज्ञ में उन याचकों की वह करूण याचना सुनकर यदुकुल तिलक महाराज ने बड़े हर्ष और उत्साह के साथ उन्हें सोना, चांदी, वस्त्र, बर्तन, हाथी, घोड़े, रथ, गौ, छत्र और शिबिका आदि प्रदान किये। जिनको जिनको जो-जो वस्तु प्रिय थी, उनको-उनको राजा ने वही वस्तु दी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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