गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 5
अयोध्यावासिनी गोपियों के आख्यान के प्रसंग में राजा विमल की संतान के लिये चिन्ता तथा महामुनि याज्ञवल्क्य द्वारा उन्हें बहुत-सी पुत्री होने का विश्वास दिलाना श्रीनारदजी कहते हैं - राजन ! अब अयोध्यावासिनी गोपियों का वर्णन सुनो, जो चारों पदार्थों को देने वाला तथा साक्षात श्रीकृष्ण की प्राप्ति कराने वाला सर्वोत्कृष्ट साधन है। मिथिलेश्वर ! सिन्धु देश में चम्पका नाम से प्रसिद्ध एक नगरी थी, जिसमें धर्मपरायण विमल नामक राजा हुए थे। वे कुबेर के समान कोष से सम्पन्न तथा सिंह के समान मनस्वी थे। वे भगवान विष्णु के भक्त और प्रशान्तचित्त महात्मा थे। वे अपनी अविचल भक्ति के कारण मूर्तिमान प्रहलाद-से प्रतीत होते थे। उन भूपाल के छ: हजार रानियाँ थीं। वे सब की सब सुन्दर रूप वाली तथा कमलनयनी थीं, परंतु भाग्यवश वे वन्ध्या हो गयीं। राजन ! 'मुझे किसी पुण्य से उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ?'- ऐसा विचार करते हुए राजा विमल के बहुत वर्ष व्यतीत हो गये। एक दिन उनके यहाँ मुनिवर याज्ञवल्क्य पधारे। राजा ने उनको प्रणाम करके उना विधिवत पूजन किया और फिर उनके सामने वे विनीतभाव से खडे़ हो गये। नृपति शिरोमणि राजा को चिन्ता से आकुल देख सर्वज्ञ, सर्ववित तथा शांतस्वरूप महामुनि याज्ञवल्क्य ने उनसे पूछा। याज्ञवल्क्य बोले- राजन ! तुम दुर्बल क्यों हो ? तुम्हारे हृदय में कौन-सी चिन्ता खड़ी हो गयी है ? इस समय तुम्हारे राज्य के सातों अंगों में तो कुशल मंगल ही दिखायी देता है ? विमल ने कहा- ब्रह्मन ! आप अपनी तपस्या एवं दिव्य दृष्टि से क्या नहीं जानते हैं ? तथापि आपकी आज्ञा का गौरव मानकर मैं अपना कष्ट बता रहा हूँ। मुनिश्रेष्ठ ! मैं संतानहीनता के दु:ख से चिन्तित हूँ। कौन-सा तप और दान करूँ, जिससे मुझे संतान की प्राप्ति हो। श्रीनारदजी कहते हैं- विमल की यह बात सुनकर याज्ञवल्क्यमुनि के नेत्र ध्यान में स्थित हो गयो। वे मुनिश्रेष्ठ भूत और वर्तमान का चिन्तन करते हुए दीर्घकाल तक ध्यान में मग्न रहे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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