गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 53
उद्धव की सलाह से समस्त यादवों का द्वारकापुरी की ओर प्रस्थान तथा अनिरुद्ध की प्रेरणा से उद्धव का पहले द्वारकापुरी में पहुँचकर यात्रा का वृत्तांत सुनाना श्रीगर्गजी कहते हैं- महाराज ! राजा उग्रसेन का घोड़ा बड़े–बड़े वीर नरेशों का दर्शन करता तथा भारतवर्ष में विचरता हुआ अन्यान्य राज्यों में गया। प्रजानाथ ! इस तरह भ्रमण करते हुए उस अश्व को बहुत काल व्यतीत हो गया और फाल्गुन का महीना आ पहुँचा। जो सबको घर की याद दिलाने वाला है। फाल्गुन मास आया हुआ देख अनिरुद्ध शंकित हो गए और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ मंत्रि प्रवर उद्धव से बोले । अनिरुद्ध ने कहा– मंत्रि प्रवर ! यादवराज उग्रेसन चैत्र में ही यज्ञ करेंगे। हम लोग क्या करें ? अब अधिक दिन शेष नहीं रह गए हैं। इस भूतल पर अश्व का अपहरण करने वाले राजा कितने शेष रह गए हैं। मैं सुनना चाहता हूँ, आप शीघ्र उनके नाम बतावें । उद्धव बोले- हरे ! अब भूतल पर या आकाश में अश्व का अपहरण करने वाले शूरवीर शेष नहीं रह गए हैं। इसलिए अब तुम सोने के हारों से अलंकृत द्वारवाली यादवों की द्वारकापुरी को चलो । उनकी यह बात सुनकर अनिरुद्ध को बड़ा हर्ष हुआ। राजन् ! अनिरुद्ध ने अश्व के आगे भी उद्धवजी की कही हुई बात दोहराई। इस प्रकार अनिरुद्ध का कथन सुनकर वह सर्वज्ञ अश्व उसी तरह शीघ्रतापूर्वक द्वारका को चल दिया। जैसे लंका से लौटे हुए हनुमानजी बड़े वेग से किष्किन्धापुरी में आए थे। नरेश्वर ! उसके पीछे–पीछे भानु और साम्ब आदि शूरवीर वायु तथा मन के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा दौड़ने लगे। उन सब लोगों में अश्व के अपहरण की आशंका से उनको पकड़कर सोने की रस्सियों से बांध दिया और उसे सेना के बीच में करके अपनी पुरी की ओर प्रस्थान किया । गाजे–बाजे की आवाज के साथ दुंदुभियाँ बजाते, पृथ्वी को कंपित करते तथा दुष्ट शत्रुओं के मन में त्रास भरते हुए यादवगण आगे बढ़ रहे थे। यादवों के साथ जाते हुए उस घोड़े को देखकर नारदजी नया कलह या विवाद खड़ा करने के लिए दूत की भाँति इंद्र के पास गए। उनके सामने घोड़े का वृत्तांत उन्होंने विस्तारपूर्वक कहा- राजेंद्र ! वह वृत्तांत सुनकर इंद्र ने उस घोड़े को चुरा ले जाने का विचार किया। वे शीघ्र ही अदृश्य होकर अश्व को देखने के लिए भूतल पर आए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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