गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 46
श्रीकृष्ण के आगमन से गोपियों को उल्लास, श्रीहरि के वेणुगीत की चर्चा से श्रीराधा की मूर्च्छा का निवारण, श्रीहरि का श्रीराधा आदि गोप सुंदरियों के साथ वन विहार, स्थल विहार, जल विहार, पर्वत विहार और रास क्रीड़ा श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन् ! श्रीकृष्ण को आया देख वे सब गोप सुंदरियां हर्ष से उल्लासित हो उठीं और दु:ख त्यागकर जय जय कार करने लगीं। श्रीराधा मूर्च्छा में ही पड़ी थीं। उनकी अवस्था देख गोपांगनाओं के प्रार्थना करने पर श्रीहरि उन्हें होश में लाने के लिए उस व्रजभूमि में वंशीनाद करने लगे। तब भी राधिका नहीं उठी। यह देख श्रीराधा वल्लभ हरि उन्हें बार बार वेणु गीत सुनाने लगे। राजन् ! वह गीत सुनकर श्रीराधा उठी, किंतु वियोग जनित दु:ख का स्मरण करके माधव के देखते देखते फिर मूर्च्छित हो गईं। तब श्रीकृष्ण के वेणु गीत से प्रसन्न हुई चंद्रानना नाम वाली सखी उनका आदेश पाकर तत्काल चंद्रावली के प्रति श्रीराधा को ही संबोधित करके बोली । चंद्रानना ने कहा– हे राधे ! जो श्रीकृष्णचंद्र पहले तुम्हारे नाम से रूठ कर चले गए थे, वे मानो एक युग के बाद फिर आ गए हैं। उन्हीं देवकीनंदन ने तुम्हारे समस्त दु:खों का नाश करने के लिए निकट बैठकर वेणु बजाते हुए गीत गाया है। राम के रमणीय प्रांगण में छुंग–छुंग ध्वनि के साथ मधुर स्वर में मृदंग बजाया जा रहा है और देवांगनाओं से सेवित देवकी नंदन माधव नृत्य करते हुए वेणु गीत सुना रहे हैं। वे मनोहर सुवर्ण की सी कांति वाले पीताम्बर से सुशोभित हैं। उनकी वक्ष:स्थल में वैजयंती की मालाएँ शोभा दे रही हैं। उन देवकीनंदन ने नंद के वृंदावन में गोपी का मंडली के मध्य में विराजमान होकर वेणु बजाते हुए गीत गाया है। मनोहर चंद्रावली के लोचनों से चुम्बित गोप, गौओं तथा गोपांगनाओं के वल्लभ और कंस वंशरूपी वन को जलाने के लिए दावानल रूप देवकी नंदन ने वेणु बजाते हुए गीत गाया है। गोप बालिकाएँ ताली बजा कर ताल दे रही हैं। और उस ताल लीला के लय के साथ साथ जो अपनी भूलताओं का विभ्रम विलास प्रदर्शित कर रहे हैं। वे देवकी नंदन गोपांगनाओं के गीतों की ओर ध्यान देकर स्वयं भी वेणु बजाते हुए गा रहे हैं। देवी जो तुम्हारे प्रेमी हैं उन परम सुंदर नंद राजकुमार देवकीनंदन ने मुकुट माला, बाजूबंद, करधनी और कुंडल आदि आभूषणों से विभूषित हो तुम्हारी प्रसन्नता के लिए वेणु गीत आरंभ किया है। जिन श्रीराधावल्लभ ने सत्यभामा के भय से स्वर्गीय पारिजात उखाड़ कर उनकी आंगन में लगा दिया है। गोपांगनाओं ओर देवांगनाओं के कामपूर्वक उन देवकीनंदन ने वेणु द्वारा गीत गाया है। जिन्होंने ऋक्षराज को जीत कर उनके यहाँ से स्यमंतकमणि ले आकर भयभीत की भाँति भूमिनाथ उग्रसेन को अर्पित की थी, वे ही रासेश्वर देवकी नंदन आज रास मंडल में पधार कर वेणु के स्वरों में गीत गा रहे हैं ।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृष्णचंद्र: पुरा निर्गतो मानतो ह्यागत: सोऽपि राधे युगान्ते पुन:। नाशयन् सर्वदु:खानि ते संनिधौ संजगौ वेणुना देवकीनन्दन:।।
छुंगछुंगेति नादं मृदंगे कलं वाद्यमाने सुरस्त्रीजनै: सेवित:। रासरम्यांगणे नृत्यकृन्माधव: संजगौ वेणुना देवकीनंदन:।।
चारूचामीकराभासिवासा विभुर्वैजयन्तीभराभासितोर: स्थल:। नन्दवृन्दावने गोपिकामध्यग: संजगौ वेणुना देवकीनन्दन:।।
चारूचंद्रावलीलोचनाचुम्बितो गोपगोवृन्दगोपालिकावल्लभ:। कंसवंशाटवीदाहदावानल: संजगौ वेणुना देवकीनन्दन:।।
बालिकातालिकाताललीललयालंगलंदर्शितभ्रूलताविभ्रम:। गोपिकागीतदत्तावधान: स्वयं संजगौ वेणुना देवकीनन्दन:।।
मौलिमालागंदै: किकिणीकुण्डलैर्भूषितो नन्दनो नन्दराजस्य च। प्रीतिकृत् सुन्दरो देवि प्रीत्य तव संजगौ वेणुना देवकीनन्दन:।।
पारिजातं समुद्धृत्य राधावरो रोषयामास भामाभयादगंणे। वल्लवीवृन्दवृन्दारिकाकामुक: संजगौ वेणुना देवकीनन्दन:।।
ऋक्षराजं विनिर्जित्य नीत्वा मणिं संददौ भीतवद् भूमिनाथाय च। सोऽपि रासे समागत्य रासेश्वर: संजगौ वेणुना देवकीनन्दन:।।
( अध्याय 46। 6 – 13 )
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