गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 9
पूर्वकाल में एकादशी का व्रत करके मनोवांछित फल पाने वाले पुण्यात्माओं का परिचय तथा यज्ञसीता स्वरूपा गोपिकाओं को एकादशी व्रत के प्रभाव से श्रीकृष्ण सांनिध्य की प्राप्ति गोपियाँ बोलीं- सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत सुन्दरी वृषभानु नन्दिनी ! तुम अपनी वाणी से बृहस्पति मुनि की वाणी का अनुकरण करती हो। राधे ! यह एकादशी-व्रत पहले किसने किया था ? यह हमें विशेष रूप से बताओ, क्योंकि तुम साक्षात ज्ञान की निधि हो। श्रीराधा ने कहा- गोपियो ! सबसे पहले देवताओं ने अपने छीने गये राज्य की प्राप्ति तथा दैत्यों के विनाश के मिले एकादशी व्रत का अनुष्ठान किया था। राजा वैशन्त ने पूर्वकाल में यमलोकगत पिता के उद्धार के लिये एकादशी-व्रत किया था, लुम्पक नाम के एक राजा को उसके पाप के कारण कुटुम्बीजनों ने अकस्मात त्याग दिया था। लुम्पक ने भी एकादशी का व्रत किया और उसके प्रभाव से अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त कर लिया। भद्रावती नगरी में पुत्रहीन राजा के तुमान् ने संतों के कहने से एकादशी-व्रत का अनुष्ठान किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो गयी। एक ब्राह्मणी को देवपत्नियों ने एकादशी व्रत का पुण्य प्रदान किया, जिससे उस मानवी ने धन-धान्य तथा स्वर्ग का सुख प्राप्त किया। पुष्पदन्ती और माल्यवान- दोनों इन्द्र के शाप से पिशाच भाव को प्राप्त हो गये थे। उन दोनों ने एकादशी का व्रत किया और उसके पुण्य-प्रभाव से उन्हें पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हो गयी। पूर्वकाल में श्रीरामचन्द्रजी ने समुद्र सेतु बाँधने तथा रावण का वध करने के लिये एकादशी का व्रत किया था प्रलय के अन्त में उत्पन्न हुए आँवले के वृक्ष के नीचे बैठकर देवताओं ने सबके कल्याण के लिये एकादशी का व्रत किया था। पिता की आज्ञा से मेधावी ने एकादशी का व्रत किया, जिससे वे अप्सरा के साथ सम्पर्क के दोष से मुक्त हो निर्मल तेज से सम्पन्न हो गये। ललित नामक गन्धर्व अपनी पत्नी के साथ ही शापवश राक्षस हो गया था, किन्तु एकादशी-व्रत के अनुष्ठान से उसने पुन: गन्धर्वत्व प्राप्त कर लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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