गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 6
प्राडविपाक मुनि के द्वारा श्रीराम - कृष्ण की व्रजलीला का वर्णन दुर्योधन ने पूछा- मुनिराज ! भगवान अनन्त श्रीबलरामजी और अनन्त लीलाकारी भगवान श्रीकृष्ण ने भूमण्डल पर अवतार लेकर विचरण किया। अब संक्षेप में यह बताने की कृपा कीजिये कि व्रज में, मथुरा में, द्वारका में और अन्यत्र उन्होंने क्या-क्या लीलाएं कीं। प्राडविपाक मुनि ने उत्तर दिया- दुर्योधन ! भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकट होते ही अद्भुत लीला आरम्भ कर दी। उन्होंने पूतना को मोक्ष प्रदान किया, शकटासुर और तृणावर्त का उद्धार किया, (माता को) विश्वरूप दिखलाया, दधि की चोरी की, अपने श्रीमुख में ब्रह्मण्ड के दर्शन करवाये, यमलार्जुन वृक्षों को उखाड़ा और दुर्वासाजी को माया का प्रभाव दिखलाया। श्रीमद् गर्गाचार्यजी के द्वारा राधाकृष्ण नाम की सुन्दरता और महिमा का वर्णन कराया। ब्रह्माजी ने वृषभानु राजनन्दिनी राधिका के साथ भाण्डीर-वन के रासमण्डल में श्रीकृष्ण का विवाह करवाया। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण, बलराम दोनों ने वृन्दावन जाकर वत्सासुर और वकासुर आदि दानवों का संहार किया, गोपालों के साथ गायें चराते हुए वृन्दावन में विचरण किया। फिर तालवन में गधे के समान रेंकने वाला जो धेनुका सुरदैत्य रहता था, उसने अपनी दुलत्ती चलाकर बलरामजी को चोट पहुँचाने की चेष्टा की। तब शक्तिशाली बलदेवजी ने दोनों हाथों से उसे पकड़कर ताड़ के वृक्ष पर दे मारा। वह फिर उठकर सामने आया तो बलरामजी उसे पुन: जमीन पर दे पटका। फलत: उसका सिर फूट गया और वह मूर्च्छित हो गया। तब बलरामजी ने शीघ्र ही उसके एक मुक्का मारा, जिससे उसके प्राण पखेरु उड़ गये। तदनन्तर श्रीकृष्ण ने कालियनाग का दमन, दावाग्नि-पान आदि लीलाएं कीं, फिर श्रीराधिकाजी के प्रति प्रेम प्रकाश करके उनके प्रेम की परीक्षा ली, वृन्दावन में विहार किया, हाव भाव युक्त दान लीला और मानलीला, शंखचूडादि का वध और शिवासुरि उपाख्यान इत्यादि के प्रवचन की बहुत सी लीलाएँ कीं। तदनन्तर एक समय गोवर्धन-पूजा की गयी। इन्द्र ने यज्ञ भाग से वंचित होने पर कुपित होकर सांवर्तक आदि मेघों के द्वारा व्रजमण्डल पर घोर वर्षा आरम्भ कर दी। सारे व्रजवासी भय से व्याकुल हो गये। भगवान श्रीकृष्ण ने उनको आतुर देखकर 'डरो मत’ यों कहकर अभयदान दिया। फिर उन्होंने गिरिराज गोवर्धन को उखाड़कर, जैसे बालक छत्रक (कुकुरमुत्ता) को उठा लेता हैं, ठीक वैसे ही गोवर्धन को अपने एक हाथ पर रख लिया। सात वर्ष की अवस्था वाले श्रीकृष्ण पूरे सात दिनों तक पर्वत को हाथ पर उठाये बिना हिले-डुले अविचल खड़े रहे। तब तो सम्पूर्ण देवताओं के साथ इन्द्र भयभीत गये और उन्होंने स्तुति की और अभिषेक किया। तदनन्तर कामधेनु सुरभि और देवता तथा मुनियों के साथ वे स्वर्ग को चले गये। गोवर्धन–धारण की इस अद्भुत लीला को देखकर सभी गोप अत्यन्त विस्मित हो गये। फिर श्रीकृष्ण ने खेत में मोती आदि के बीज बोकर मोती उपजाने का चमत्कारमय ऐश्वर्य गोपों को दिखलाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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