गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 37
श्रीकृष्ण-पुत्र भानु के हाथ से हरिश्मश्रु दैत्य का वध नारदजी कहते हैं- राजन् ! महानाभ मारा गया, यह सुनकर तथा दैत्य सेना पलायन कर गयी यह देखकर, मगरमच्छ पर चढ़ा हुआ दैत्य हरिश्मश्रु समरभूमि में आया। उस समय हरिश्मश्रु दैत्य के ओठ फड़क रहे थे, उसने यादवों के सुनते हुए अत्यन्त कठोर वचन कहा । हरिश्मश्रु बोला- अरे ! तुम सब लोग मेरे शक्ति के सामने क्या हो स्वल्प–पराक्रमी मनुष्य ही तो हो। दीनहीन होने पर केवल अस्त्र शस्त्रों के बल पर जीतते हो। तुम जैसे लोगों में पुरुषार्थ ही क्या है यदि तुम्हारे दल में कोई भी बलवान हो तो मेरे साथ बिना अस्त्र-शस्त्र के मल्ल युद्ध करे, जिससे तुम्हारे पौरुष का पता लगे। नारद जी कहते हैं- दैत्य की ऐसी बात सुनकर और उसके अत्यन्त उद्भट शरीर को देखकर सब लोग परस्पर उसकी प्रशंसा करते हुए मौन रह गये-उसे कोई उत्तर न दे सके। तब सत्यभामा के बलवान पुत्र भानु मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए रणभूमि में अस्त्र शस्त्र त्यागकर सहसा उसके सामने खड़े हो गये। राजन् ! महाबली हरिश्मश्रु तिमिंगिल (मगरमच्छ) की पीठ से उतरकर भुजाओं पर ताल ठोंकता हुआ सयत्न होकर सामने खड़ा हो गया। जैसे ठोंकता हुआ सयत्न होकर सामने खड़ा हो गया। जैसे दो हाथी वन में दांतों द्वारा परस्पर प्रहार करते हों, उसी प्रकार वे दोनों वीर बाँहों से बाँह मिलाकर एक दूसरे को बलपूर्वक ढकेलने लगे। राज राजेन्द्र ! उस दैत्य ने भानु को अपनी भुजाओं से सौ योजन पीछे प्रकार ढकेल दिया, जैसे एक सिंह दूसरे सिंह को बलपूर्वक पछाड़ देता है। तब पुन: श्रीकृष्ण कुमार ने महान असुर हरिश्मश्रु को बलपूर्वक सहसा सहस्त्र योजन पीछे ढकेल दिया। तत्पश्चात् दैत्यराज हरिश्मश्रु ने अपनी बाँह को भानु के कंधे में फंसाकर उन्हें अपनी कमर पर ले लिया और फिर घुटना पकड़कर उन्हें पृथ्वी पर पटक दिया। तब भानु ने अपने बाहुबल से उसे पीठ पर ले लिया और उसकी जाँघें पकड़कर उस दैत्य को धरती पर दे मारा। तदनन्तर वे दोनों पुन: उठकर भुजाओं पर ताल ठोंकते हुए खड़े हो गये। राजन् ! वे दोनों फुर्ती दिखाते हुए गरुड़ और सर्प की भाँति एक-दूसरे से लड़ने लगे। दैत्य ने अपने बाहुबल से श्रीकृष्णनन्दन भानु के पैर पकड़कर उन्हें आकाश में लाख योजन दूर फेंक दिया। आकाश से गिरने पर भानु को मन ही मन कुछ व्याकुलता हुई; किंतु जैसे शैल शिखर से गिरकर प्रहलाद बच गये थे, उसी प्रकार श्रीहरि की कृपा से भानु की भी रक्षा हो गयी। तब श्रीकृष्ण कुमार ने हरिश्मश्रु की लंबी दाढ़ी पकड़कर उसे घुमाया और आकाश में लाख योजन दूर फेंक दिया। आकाश से गिरने पर उसके मन में भी कुछ व्याकुलता हुई। फिर उसने दाढ़ी को अपने मुँह पर सँभालकर भानु को एक मुक्का मारा । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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