गर्ग संहिता
गर्ग संहिता-माहात्म्य : अध्याय 4
शाण्डिल्य मुनि का राजा प्रतिबाहु को गर्गसंहिता सुनाना; श्रीकृष्ण प्रकट होकर राजाको वरदान देना; राजाको पुत्र की प्राप्ति और संहिता का माहात्म्य महादेवजी बोले- प्रिये ! मुनीश्वर शाण्डिल्य का यह कथन सुनकर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसेन विनयावत होकर प्रार्थना की- ‘मुने ! मैं आपके शरणागत हूँ। आप शीघ्र ही मुझे श्रीहरि की कथा सुनाइये और पुत्रवान् बनाइये’। राजा की प्रार्थना सुनकर मुनिवर शाण्डिल्य ने श्रीयमुनाजी के तट पर मण्डप का निर्माण करके सुखदायक कथा-परायण आयोजन किया। उसे सुनकर सभी मथुरावासी वहाँ आये ।महान ऐश्वर्यशाली यादवेन्द्र श्रीप्रतिबाहु कथारम्भ तथा कथा समाप्ति के दिन ब्राह्मणों को उत्तम भोजन कराया तथा बहुत-सा धन दान दिया। तत्पश्चात राजा ने मुनिवर शाण्डिल्य का भली-भाँति पूजन करके उन्हें रथ, अश्व, द्रव्यराशि, गौ, हाथी और ढेर-के-ढेर रत्न दक्षिणा में दिये। सर्वमंगले ! तब शाण्डिल्य ने मेरे द्वारा कहे हुए श्रीमान् गोपालकृष्ण के सहस्त्रनामका पाठ किया, जो सम्पूर्ण दोषों को हर लेने वाला है। कथा समाप्त होने पर शाण्डिल्य की प्रेरणा से राजेन्द्र प्रतिबाहु ने भक्तिपूर्वक व्रजेश्वर श्रीमान् मदनमोहन का ध्यान किया। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रेयसी राधा तथा पार्षदों के साथ वहाँ प्रकट हो गये। उन सांवरे-सलोने के हाथ में वंशी और बेंत शोभा पा रहे थे। उनकी छटा करोड़ों कामदेवों को मोह में डालने वाली थी। उन्हें सम्मुख उपस्थित देखकर महर्षि शाण्डिल्य, राज तथा समस्त श्रोताओं के साथ तुरंत ही उनके चरणों में लोट पड़े और पुन: विधि-पूर्वक स्तुति करने लगे। शाण्डिल्य बोले- प्रभो ! आप वैकुण्ठपुरी में सदा लीला में तत्पर रहने वाले हैं। आपका स्वरूप परम मनोहर है। देवगण सदा आपको नमस्कार करते हैं। आप परम श्रेष्ठ हैं। गोपालन की लीला में आपकी विशेष अभिरुचि रहती है – ऐसे आपका मैं भजन करता हूँ। साथ ही आप गोलोकाधिपति को मैं नमस्कार करता हूँ। प्रतिबाहु बोले- गोलोकनाथ ! आप गिरिराज गोवर्धन के स्वामी हैं। परमेश्वर ! आप वृन्दावन क अधीश्वर तथा नित्य विहार की लीलाऐं करने वाले हैं। राधापते ! वज्रांग्नाएँ आपकी कीर्ति का गान करती रहती है। गोविन्द ! आप गोकुल के पालक हैं। निश्चय ही आपकी जय हो। तथा पुरुषोत्तम हैं। माधव ! आप भक्तों को सुख देने वाले हैं ! मैं आपकी शरण ग्रहण करती हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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