गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 20
बलदेवजी के हाथ से प्रलम्बासुर का वध तथा उसके पूर्वजन्म का परिचय श्रीनारदजी कहते हैं – राजन् ! इस प्रकार यमुनाजी का सहस्त्रनामस्तोत्र सुनकर वीरभूप शिरोमणि मांधाता सौभरिमुनि को नमस्कार करके अयोध्यापुरी को चले गये। यह मैंने तुमसे गोपियों के शुभ चरित्र का वर्णन किया, तो महान पापों को हर लेने वाला और पुण्यप्रद है। बताओ और क्या सुनना चाहते हो ? बहुलाश्व बोले– ब्रह्मन ! मैंने आपके मुख से गोपियों के चरित्र का उत्तम वर्णन सुना। साथ ही यमुना के पंचांग का भी श्रवण किया, जो बड़े-बड़े़ पातको का नाश करने वाला है। साक्षात गोलोक के अधिपति भगवान श्रीकृष्ण ने बलरामजी के साथ व्रजमण्डल आगे कौन-कौन-सी मनोहर लीलाएँ कीं यह बताइये। श्रीनारदजी ने कहा- राजन् ! एक दिन श्रीबलराम और ग्वाल-बालों के साथ अपनी गौएँ चराते हुए श्रीकृष्ण भाण्डीर वन में यमुनाजी के तट पर बालोचित खेल खेलने लगे। बालकों से वाहृा-वाहन का खेल करवाते हुए श्रीकृष्ण मनोहर गौओं की देख-भाल करते हुए वन में विहार करते थे। (इस खेल में कुछ लड़के वाहन-घोड़ा आदि बनते और कुछ उनकी पीठ पर सवारी करते थे।) उस समय वहाँ कंस का भेजा हुआ असुर प्रलम्ब गोपरूप धारण करके आया। दूसरे ग्वाल-बाल तो उसे न पहचान सके, किंतु भगवान श्रीकृष्ण से उसकी माया छिपी न रही। खेल में हारने वाला बालक जीतने वाले को पीठ पर चढ़ाता था, किंतु जब बलरामजी जीत गये, तब उन्हें कोई भी पीठ पर चढ़ाने को तैयार नहीं हुआ। उस समय प्रलम्बासुर ही उन्हें भाण्डीर वन से यमुना तट तक अपनी पीठ पर चढाकर ले जाने लगा। एक निश्चित स्थान था, वहाँ ढोकर ले जाने वाला बालक अपनी पीठ पर चढे़ हुए बालक को उतार देता था, परंतु प्रलम्बासुर उतारने के स्थान पर पहुँचकर भी उन्हें उतारे बिना ही मथुरा तक ले जाने को उद्यत हो गया। उसने बादलों की घोर घटा की भाँति भयानक रूप धारण कर लिया और विशाल पर्वत के समान दुर्गम हो गया। उस दैत्य की पीठ पर बैठे हुए सुन्दर बलरामजी के कानों में कान्तिमान कुण्डल हिल रहे थे। ऐसा जान पड़ता था, मानों आकाश में पूर्ण चन्द्रमा उदित हुए हों अथवा मेघों की घटा में बिजली चमक रही हो। उस भयानक दैत्य को देखकर महाबली बलदेवजी को बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने उसके मस्तक पर कस के मुक्का मारा, मानों इन्द्र ने किसी पर्वत पर व्रज का प्रहार किया हो। उस दैत्य का मस्तक व्रज से आहत पहाड़ की तुर फट गया और वह सहसा पृथ्वी को कम्पित करता हुआ धराशायी हो गया। उसके शरीर से एक विशाल ज्योति निकली और बलरामजी में विलीन हो गयी। उस समय देवता बलरामजी के ऊपर नन्दन वन के फूलों की वर्षा करने लगे। नृपेश्वर ! इस प्रकार श्रीबलदेवजी के परम अद्भुत चरित्र का मैंने तुम्हारे समक्ष वर्णन किया, अब और क्या सुनना चाहते हो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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