गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 21
कौरव तथा यादव वीरों का घमासान युद्ध; बलराम और श्रीकृष्ण का प्रकट होकर उनमें मेल कराना भीष्मजी समस्त धर्मधारियों में श्रेष्ठ, महान भगवद्भक्त, विद्वान और वीर-समुदाय के अग्रगण्य थे। उन्होंने युद्ध में परशुरामजी के भी छक्के छुड़ा दिये थे। उनके मस्तक पर शिरस्त्राण एवं मुकुट शोभा पाता था। उनकी अंग-कान्ति गौर थी। दाढ़ी-मूँछ के बाल सफेद हो गये थे। वे कौरवों के पितामह थे तो भी बलपूर्वक युद्धभूमि में विचरते हुए सोलह वर्ष के नवयुवक के समान जान पड़ते थे। उन्होंने अपने बाणों से अनिरुद्ध की विशाल सेना को मार गिराया। हाथियों में मस्तक कट गये, घोडो़ की गर्दनें उतर गयीं। हाथ में तलवार लिये पैदल योद्धा बाणों की मार खाकर दो-दो टुकडों में विभक्त हो गये। रथों के सारथि, घोड़ों और रथियों को मारकर उन रथों को भी भीष्म ने चूर्ण कर दिया। जिन राजकुमारों के पैर कट गये थे, वे ऊर्ध्वमुख होने पर भी अधोमुख हो गये। हाथ में खड्ग और धनुष लिये योद्धा बांहें कट जाने के कारण धराशायी हो गये। कुछ सैनिकों के कवच छिन्न-भिन्न हो गये और वे प्राणशून्य होकर भूमि पर गिर पडे़। वहाँ गिरे हुए स्वर्ण भूषित वीरों, घोड़ों, रथों और हाथियों से वह युद्धमण्डल कटे हुए वृक्षों से वन की भाँति शोभा पा रहा था। राजन ! वह रणभूमि मूर्तिमती महामारी के समान प्रतीत होती थी। अस्त्र-शस्त्र उसके दांत, बाण केश, ध्वज पताका उसके वस्त्र और हाथी उसके स्तन जान पड़ते थे। रथों के पहिये उसके कानों के कुण्डल से प्रतीत होते थे। वहाँ रक्त-स्त्राव से प्रकट हुई नदी तीव्र वेग से प्रवाहित होने लगी। उसमें रथ, घोडे़ और मनुष्य भी बह चले। वह रक्त-सरिता वैतरणी के समान मनुष्यों के लिये अत्यन्त दुर्गम हो गयी थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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