गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 19
यमुना-सहस्त्रनाम मांधाता बोले – मुनिश्रेष्ठ ! यमुनाजी का सहस्त्र नाम समस्त सिद्धियों की प्राप्ति कराने वाला उत्तम साधन है, आप मुझे उसका उपदेश कीजिये, क्योंकि आप सर्वज्ञ और निरामय (रोग-शोक से रहित) हैं। सौभरि ने कहा- मांधाता नरेश ! मै तुमसे ’कालिन्दी सहस्रनाम’ का वर्णन करता हूँ। वह समस्त सिद्धियों की प्राप्ति कराने वाला दिव्य तथा श्रीकृष्ण को वशीभूत करने वाला है। -उक्त वाक्य पढकर सहस्त्रनाम-पाठ के लिये विनियोग का जल छोडे़। काञ्चीकेयूरयुक्तां कनकमणिमये बिभ्रतिं कुण्डले द्वे ।। जो श्यामा (श्यामावर्ण एवं षोडश वर्ष की अवस्था वाली) है, जिनके नेत्र प्रफुल्ल कमल-दल की शोभा को छीने लेते हैं, घनीभूत मेघ के समान जिनकी नील कान्ति है, जो रत्नों द्वारा निर्मित बजते हुए नूपुर और झनकारिता हुई करधनी एवं केयुर आदि आभूषणों से युक्त है तथा कानों में सुवर्ण एवं मणि निर्मित दो कुण्डल धारण करती है, दीप्तिमती नीली साड़ी पर चमकते हुए गज मौक्तिक के चंचल हार का भार वहन करने से अत्यन्त मनोहर जान पड़ती है, शरीर से छिटकती हुई किरणों की राशि से उद्दीप्त होने के कारण जिनकी प्रज्वलित दीपमाला के समान शोभा हो रही है, उन सूर्यनन्दिनी यमुनाजी का में ध्यान करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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