गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 7
श्रीराम-कृष्ण की मथुरा-लीला का वर्णन प्राडविपाक मुनि बोले- युवराज दुर्योधन ! भगवान बलरामजी और श्रीकृष्णचन्द्र ने मथुरा में जो-जो लीलाएँ कीं, उनका संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ; सूनो कुछ समय के पश्चातकाल नेमिकुमार कंस ने बलराम और श्रीकृष्ण को बुलाने के लिये अक्रूरजी को भेजा। अक्रूरजी व्रज में पधारे। श्रीकृष्ण को मथुरा जाने के लिये प्रस्तुत देखकर गोपियां विरह से आतुर हो गयीं। भगवान ने उन सबको अलग-अलग बुलाकर आश्वासन दिया। फिर बलरामजी सहित स्वयं रथ पर सवार होकर अक्रूरजी के साथ मथुरा की ओर चले। जाते समय रास्ते में यमुनाजी पड़ीं। उसके जल में भगवान ने अक्रूर को अपने तेज या धाम के दर्शन कराये। तदनन्तर पूर्वाह्न के समय वे मथुरा में जा पहुँचे और अपराह्नकाल तक मथुरापुरी को सब ओर से देखते रहे। लीलारूप में मनुष्य का वेष धारण किये हुए श्रीराम कृष्ण साक्षात पुराण-पुरुष हैं। मथुरा नगरी के सभी नर नारियों के मन में उनके दर्शन का आनन्द प्राप्त करने की अभिलाषा उत्पन्न हो गयी और वे अपना सारा काम-धाम छोड़कर, जैसे ही उनकी और दौड़ पड़े। कोटि-कोटि काम देवों का दर्प चूर्ण करने वाले भगवान रामकृष्ण ने अपना सौन्दर्य सब को दिखलाया और उन सबका मन हरण करते हुए वे स्वेच्छा से विचरण करने लगे। तदनन्तर राजमार्ग भगवान ने धोबी और रंगरेज से कपड़ों की याचना की; परंतु उन्होंने वस्त्र नहीं दिये, तब सबके देखते-देखते ही हाथों से प्रहार करके धोबी और रंगरेज दोनों को उस जीवन से मुक्त कर दिया। तदनन्तर भगवान को एक दर्जी मिला। उसने वस्त्रों के द्वारा उनको सजाया और भगवान ने उसे अपना सारुप्य प्रदान कर दिया। फिर कुब्जा सैरन्ध्री मिली। वह तीन जगह से टेढ़ी थी। चन्दन ग्रहण करने के बहाने भगवान ने उसको सीधी कर दिया। वह तीनों लोकों में सुन्दरी बन गयी। तत्पश्चात् वहाँ के वैश्य व्यापारियों से बातचीत की और कुछ बच्चों को साथ लेकर, जहाँ कंस का धनुष रखा था, उस स्थान पर वे जा पहुँचे। वह धनुष स्वर्ण से मण्डित था और सात ताड़ वृक्षों के बराबर उसकी लंबाई थी। हजारों पुरुषों के द्वारा भी वह उठाया नहीं जा सकता था। वह धनुष अष्ट धातु से बना हुआ था, अत्यन्त भारी था और उसका बोझ लाख भार के समान था। कंस ने वह धनुष परशुरामजी से प्राप्त किया था। वह वैष्णव (भगवान विष्णु से सम्बन्ध रखने वाला) धनुष साक्षात भगवान शेष के समान कुण्डलाकार था। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे देखा और बलपूर्वक उठा लिया; फिर सब लोगों के देखते देखते ही लीलापूर्वक उस धनुष को चढ़ाया और कान तक तानकर ले गये। तदनन्तर दोनों भुजाओं का सहारा लगाकर उसको बीच से उसी प्रकार तोड़ डाला, जैसे हाथी अपनी सूँड़ से गन्ने को तोड़ देता है। धनुष के टूटने की भयानक ध्वनि से पाताल सहित सप्त लोकमय सारा ब्रह्माण्ड गूंज उठा। तारे और दिग्गजगण अपने स्थान से विचलित हो चले। इतना ही नहीं, सारा भूमण्डल दो घड़ी तक थाली की तरह कांपता रह गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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