गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 7
राजा विमल का संदेश पाकर भगवान श्रीकृष्ण का उन्हें दर्शन और मोक्ष प्रदान करना तथा उनकी राजकुमारियों को साथ लेकर व्रजमण्डल में लौटना श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! तदनन्तर दूत पुन: सिन्धुदेश से मथुरा-मण्डल में आया। वृन्दावन में विचरते हुए यमुना के तटपर उसको श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ। एकान्त में श्रीकृष्ण को प्रणाम करके दोनों हाथ जोडकर और उनकी परिक्रमा करके उसने धीरे-धीरे राजा विमल की कही हुई बात दुहरायी। दूत ने कहा- जो स्वयं परब्रह्म परमेश्वर हैं, सबसे परे और सबके द्वारा अदृश्य हैं, जो परिपूर्ण देव पुण्य की राशि से भी सदा दूर ऊपर उठे हुए हैं, तथापि संतजनों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाले हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को मेरा नमस्कार है। गौ, ब्राह्मण, देवता, वेद, साधु पुरुष तथा धर्म की रक्षा के लिये जो अजन्मा होने पर भी इन दिनों कंसादि दैत्यों के वध के लिये युदकुल में उत्पन्न हुए हैं, उन अनन्त गुणों के महासागर आप श्रीहरि को मेरा नमस्कार है। अहो ! व्रजवासियों का बहुत बड़ा सौभाग्य है। आपके पिता नन्दराज का कुल धन्य है, यह व्रजमण्डल तथा यह वृन्दावन धन्य हैं, जहाँ आप परमेश्वर श्रीहरि साक्षात प्रकट हैं। प्रभो ! आप श्रीराधारानी के कण्ठ में सुशोभित सुन्दर (नीलमणिमय) हार हैं, कस्तुरी की सुगन्ध की भाँति सर्वत्र प्रसिद्ध हैं और आपका सर्वत्र फैला हुआ निर्मल यश सम्पूर्ण त्रिलोकी को तत्काल श्वेत किये देता है। आप लोगों के चित्त का सम्पूर्ण अभिप्राय जानते हैं, क्योंकि आप समस्त क्षेत्रों के ज्ञाता आत्मा हैं और कर्मराशि के साक्षी हैं। तथापि राजा विमल ने जो परम रहस्य की और स्वर्धम से सम्बद्ध बात कही है, उसको मैं आपसे एकान्त में बताउँगा। सिन्धुदेश में जो चम्पका नाम से प्रसिद्ध इन्द्रपुरी के समान सुन्दर नगरी है, उसके पालक राजा विमल देवराज इन्द्र के समान ऐश्वर्यशाली हैं। उनकी चित्तवृति सदा आपके चरणारविन्दों में लगी रहती है। उन्होंने आपकी प्रसन्नता के लिये सदा सैकड़ों यज्ञों का अनुष्ठान किया है तथा दान, तप, ब्राह्मण सेवा, तीर्थ सेवन और जप आदि किये हैं। उनके इन उत्तम साधनों को निमित्त बनाकर आप उन्हें अपना सर्वोत्कृष्ट दर्शन अवश्य दीजिये। उनकी बहुत-सी कन्याएँ हैं, जो प्रफुल्ल कमल-दल के समान विशाल नेत्रों से सुशोभित हैं और आप पूर्ण परमेश्वर को पतिरूप में अपने निकट पाने के शुभ अवसर की प्रतीक्षा करती हैं। वे राजकुमारियाँ सदा आपकी प्राप्ति के लिये नियमों ओर व्रतों के पालन में तत्पर हैं तथा चरणों की सेवा से उनके तन, मन निर्मल हो गये हैं। ब्रज के देवता ! आप अपना उत्तम और अदभुत दर्शन देकर उन सब राजकन्याओं का पाणिग्रहण कीजिये। इस समय आपके समक्ष जो यह कर्त्तव्य प्राप्त हुआ है, इसका विचार करके आप सिन्धु देश में चलिये और वहाँ के लोगों को अपने पावन दर्शन से विशुद्ध कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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