गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 7
गुजरात-नरेश ऋष्य पर विजयप्राप्त करके यादव-सेना का चेदिदेश के स्वामी दमघोष के यहाँ जाना; राजा का यादवों से प्रेमपूर्ण बर्ताव करने का निश्चय, किंतु शिशुपाल का माता-पिता के विरुद्ध यादवों से युद्ध का आग्रह उद्धव ने कहा- राजन ! महाराज उग्रसेन को बलि दीजिये। वे समस्त राजाओं को जीतकर राजसूय यज्ञ करेंगे। श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! उद्धवजी का यह वचन सुनकर दमघोष के दुष्ट पुत्र शिशुपाल के ओष्ठ फड़कने लगे। वह अत्यनत कुपित हो राजसभा में तुरंत इस प्रकार बोला । शिशुपाल ने कहा- अहो ! काल की गति दुर्लंघय है। यह संसार कैसा विचित्र है ! कालात्मा विधाता के प्राजापत्य पर भी कलह या विवाद खड़ा हो गया है (अर्थात लोक विधाता ब्रह्मा और घट-निर्माता कुम्भकार में झगड़ा हो रहा है कि प्रजापति कौन हैं) कहाँ राजहंस और कहाँ कौआ ! कहाँ पण्डित तथा कहाँ मूर्ख ! जो सेवक है, वे चक्रवर्ती राजा को अपने स्वामी को जीतने की इच्छा रखते हैं। राजा ययाति के शाप से यदुवंशी राज्य-पद से भ्रष्ट हो चुके हैं; किंतु वे छोटे–राज्य पाकर उसी तरह इतरा उठे हैं, जैसे छोटी नदियां थोड़ा सा जल पाकर उमड़ने लगती हैं- उच्छलित होने लगती हैं। जो हीनवंश का होकर राजा हो जाता है, अथवा जो सदा का निर्धन कभी धन पा जाता है, वह घमंड से भरकर सारे जगत को तृणवत मारने लगता है। उग्रसेन कितने दिनों से राजपदवी को प्राप्त हुआ है ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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