गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 13
अनिरूद्ध का अन्त:पुर से आज्ञा लेकर अश्व की रक्षा के लिये प्रस्थान; उनकी सहायता के लिये साम्ब का कृतप्रतिज्ञ होना; लक्ष्मणा का उन्हें सम्मुख युद्ध के लिये प्रोत्साहन देना; श्रीकृष्ण के भाइयों और पुत्रों का भी श्रीकृष्ण की आज्ञा से प्रस्थान करना तथा यादवों की चतुरंगिणी सेना का विस्तृत वर्णन श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन ! तदनन्तर गुरुजनों को नमस्कार करके अनिरूद्ध देवकी, रोहिणी, रूक्मिणी, सत्यभामा तथा अन्य सम्पूर्ण श्रीहरिवल्लभाओं से आज्ञा लेने के लिये अन्त:पुर में गये। वहाँ उन सबकी आज्ञा ले, अपनी माता रति तथा रूक्मवती को प्रणाम करके उनसे कहा- ‘मैं अश्व की रक्षा करने के लिये जाता हूँ। इसके लिये महाराज ने मुझे आज्ञा दी है। मेरे साथ अन्य बहुत-से यदुवंशी वीर जा रहे हैं’। राजन ! अनिरूद्ध का यह कथन सुनकर माताओं ने उन्हें हृदय से लगा लिया और गद्गदकंठ से उन प्रणत प्रद्युम्न कुमार को जाने की आज्ञा देते हुए आशीर्वाद प्रदान किया। माताओं को नमस्कार करके वे अपनी पत्नियों के महलों मे गये। अपने पति को आया देख ऊषा आदि तीनों पत्नियों ने उनका समादर किया। परंतु विरह की सम्भावना से उन सबका मन उदास हो गया। अनिरूद्ध उन प्यारी पत्नियों को आश्वासन दे राजसभा में लौट आये। राजेन्द्र ! उसके बाद यज्ञ-सम्बन्धी अश्व की रक्षा के लिये यात्रा के निमित्त ऋषि-मुनियों ने अनिरूद्ध के उद्देश्य से मंगलपाठ किया। फिर वे समस्त महर्षियों, गुरुजनों, महाराज उग्रसेन, शूरसेन, वसुदेव, बलराम, श्रीकृष्ण, अपने पिता प्रद्युम्न तथा अन्यान्य पूजनीय यादवों को प्रणाम करके समस्त नागरिकों द्वारा पूजित हुए। नरेश्वर ! उन्होंने हाथ में धनुषबाण लिये, अँगुलियों में गोधा के चर्म से बने हुए दस्ताने पहन लिये, कवच-कुण्डल धारण किये और पैरों में जूते पहनकर सिंह के समान पराक्रमी महावीर अनिरूद्ध ने ढाल, तलवार, किरीट एवं शक्ति ले, सोने के बने हुए आभूषण धारण किये। फिर वे इन्द्र के दिये हुए दिव्य रथ के द्वारा अपनी पुरी से बाहर निकले। उस समय गाजे-बाजे की आवाज और वेदमन्त्रों के घोष के साथ यात्रा करते हुए अनिरूद्ध चारों ओर से चँवर डुलाये जा रहे थे। समस्त पुरवासी उनकी इस यात्रा को देख रहे थे। तदनन्तर भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने उनके साथ जाने के लिये उद्धव आदि मन्त्री तथा भोज, वृष्णि, अन्धक, मधु, शूरसेन और दशार्णकुल में उत्पन्न वीर योद्धा भेजे। तदनन्तर राजा उग्रसेन ने यदुवंशी वीरों को सम्बोधित करके पूछा- ‘यादवों ! बताओं, युद्ध में अनिरूद्ध की सहायता करने के लिये कौन जायगा ?’ उग्रसेन की बात सुनकर जाम्बवती कुमार साम्ब ने सबके देखते-देखते राजा को नमस्कार करके यह बात कही।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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