गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 38
नन्दिकेश्वर द्वारा सुनंदन का वध, भगवान शिव के त्रिशूल से आहत हुए अनिरुद्ध की मूर्च्छा, साम्ब द्वारा शिव की भर्त्सना, साम्ब और शिव का युद्ध तथा रणक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का शुभागमन श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन ! भैरव को निद्रित देख मृत्युंजय शिव कुपित हो उठे। उन्होंने वीरमानी अभिमन्यु पर आक्रमण करने के लिए अपने वृषभ नन्दिकेश्वर को प्रेरित किया। वृषभ उसी समय क्रोध से भरकर दोनों सींगों, दाँतों और पिछले पैरों से यादवों पर प्रहार करता हुआ सेना में विचरने लगा। उसने सामने खड़े हुए सुनंदन पर अपने एक सींग से शीघ्र ही आघात किया। उस सींग के आघात से सुनंदन का वक्ष विदीर्ण हो गया और वे पंचतत्त्व को प्राप्त हो गए । तब हाथी पर बैठे हुए अनिरुद्ध धनुष लिए, कवच बांध कर मत डरो, मत डरो– ऐसा करते हुए अत्यंत क्रोधपूर्वक वहाँ आए। श्रीकृष्ण पुत्र वीर सुनंदन को वहाँ मारा गया देख अनिरुद्ध को बड़ा दु:ख हुआ। वे शोक में डूब कर कांपने लगे। उस महावीर के मारे जाने पर शोक में पड़े हुए अनिरुद्ध से शिवजी ने कहा– महाबली अनिरुद्ध ! तुम रणक्षेत्र में शोक न करो। युद्ध में भाग जाना शूरवीरों के लिए अकीर्तिकारक माना गया है। इसलिए तुम भी संग्राम स्थल में मेरे साथ यत्नपूर्वक युद्ध करो। मेरे सामने युद्ध की अभिलाषा से आए हुए तुम्हारे भी प्राण जाने वाले ही हैं। तुम उनकी रक्षा करो । श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन् ! भगवान शिव की यह बात सुनकर यदुकुल तिलक अनिरुद्ध ने शोक त्याग दिया और शिवजी के मस्तक पर पांच बाण मारे। वे पांचों बाण महेश्वर के जटाजूट में उलझ गए और गीध के पंखों से युक्त वनस्पति की शाखा के समान दिखाई देने लगे। तब रुद्रदेव ने अपने कोदण्ड पर एक बाण रखा और उसके द्वारा सहसा अनिरुद्ध के धनुष की प्रत्यंचा काट दी। अनिरुद्ध ने फिर शीघ्र ही अपने सुदृढ़ धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा ली और एक सायक द्वारा शंकरजी के धनुष की प्रत्यंचा को भी खण्डित कर दिया। तब उन दोनों में अद्भुत एवं रोमांच कारी युद्ध का समाचार सुनकर विमान पर बैठे हुए इंद्र आदि देवता कौतुहलवश वहाँ आ गए और आकाश में स्थित हो वह युद्ध देखकर भय से विह्वल हो परस्पर कहने लगे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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