गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 33
श्रीकृष्ण की कृपा से दैत्य राजकुमार कुनन्दन के जीवन की रक्षा सैन्यपाल ने कहा– यहाँ सभी रणदुर्मद धनुर्धर वीर तो आ गए हैं, केवल राजा के पुत्र युवराज इस रणभूमि में नहीं दिखाई देते हैं। वे मेरे बेटे को मरवाकर घर में बैठे क्या कर रहे हैं ? क्या वे भुशुण्डी के मुँह में पड़कर मेरे पुत्र के ही रास्ते पर नहीं जायँगे ? ऐसा कहकर रोष से आँखें लाल किए सैन्यपाल बड़े हर्ष के साथ राजकुमार को पकड़ने के लिए शीघ्र ही पुरी में जा पहुँचा। उस राजकुमार ने रात में भोजन के बीच में ही मदिरा पीकर शयन किया था, अत: मदमत्त होने के कारण वह राजा की आज्ञा को भूल गया था। ढिंढोरे पर की गई घोषणा सुन को सुन कर उसकी पत्नी भय से विह्वल हो रो पड़ी और अपने पति राजकुमार को जगाने लगी– हे वीर ! उठो ! उठो ! उठो ! प्रात:काल हो गया। नगाड़े की आवाज के साथ तुम्हारे पिता का यह शासनपुरी में सुनाई देता है- जो युद्ध के लिए नहीं जाएंगे, वे पुत्र आदि ही क्यों न हों, वध के योग्य होंगे। इसलिए शीघ्र जाओ और पिता का दर्शन करो । अपनी प्यारी पत्नी के जगाने पर उसको कुछ होश हुआ। जब बल्वल की सेना चली गई, तब उसकी पत्नी ने उसे पुन: जगाया। तब निद्रा त्याग कर राजकुमार उठा और तुरंत धनुष–बाण लेकर मन ही मन भगवान शिव तथा गणेशजी का स्मरण करता हुआ रथ के द्वारा युद्ध के लिए चला। राजकुमार को आया देख सैन्यपाल ने रोष से पूछा– तुमने दैत्यराज के शासन का किस बल से और क्यों उल्लंघन किया है ? वह मुझे बताओ। मेरा बेटा भी तुम्हारे समान विलम्ब करके शीघ्र रणभूमि में नहीं पहुँचा था, इसलिए बल्वल ने उसे शतघ्नी के मुंह पर खड़ा करके मार डाला, अत: पिता के पास चलो। तुम्हारे पिता सत्यवादी हैं। उन्होंने तुम्हें पकड़ कर लाने के लिए मुझे भेजा है, अत: वे शीघ्र ही तुम्हें मार डालेंगे । सैन्यपाल की बात सुनकर भय के कारण राजकुमार का मुँह सूख गया। वह दु:खी सुधन्वा की भाँति पिता के पास गया। दैत्य समुदाय से घिरे हुए उसके पिता अनिरुद्ध को जीतने के लिए उत्सुक हो रोषपूर्वक रथ पर बैठे थे। उनके पास जाकर राजकुमार ने पिता का दर्शन किया। पिता को देखकर उनके चरणों में मस्तक झुका कर राजकुमार लज्जित तथा भय से विह्वल हो गया। बल्वल कुपित हो दांतों से दांत पीसता हुआ बोला- अरे ! अपने विनाश के लिए तूने मेरी आज्ञा का उल्लंघन क्यों किया ? तेरे इस अपराध के कारण मैं तुझे दण्ड दूंगा। निश्चय ही तू डर कर रण क्षेत्र से प्राण बचाने के लिए घर में जा घुसा था। कुनंदन ! तू पुत्र नहीं, कुपुत्र है, शत्रु के समान है और अत्यंत मलिन है। मैं तुझे त्याग कर शतघ्नी के मुख से अभी मार डालूंगा । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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