गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 11
दन्तवक्र की पराजय तथा करुष देश पर यादव-सेना की विजय अक्रूर, वृतवर्मा, सात्यकि और सारण ये चारों वीर आँधी के उखाडे़ हुए वृक्षों की भाँति मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पडे़ तदनन्तर जाम्बवती कुमार साम्ब ने उसकी गदा लेकर, गदा के ऊपर अपनी गदा रखकर उससे दन्तवक्र को मारा। दन्तवक्र ने गदा फेंक दी और जाम्बवती कुमार साम्ब को पकड़कर दोनों भुजाओं से रणमण्डल में गिरा दिया। तब साम्ब ने भी उठकर उसके दोनों पैर पकड़कर उसे भूपृष्ठ पर दे मारा। वह एक अद्भुत सी बात हुई। दन्तवक्र उठकर उस समय अट्टहास करने लगा। उसकी आवाज से सात लोकों और पातालों सहित समूचा ब्रह्माण्ड गूँज उठा। सहस्त्रों सूर्यों के समान तेजस्वी और सहस्त्र घोड़ा से जुते हुए पताका-मण्डित दिव्य रथ पर आरुढ़ होकर आये हुए धनुर्धरों में श्रेष्ठ प्रद्युम्न की ओर देखकर दन्तवक्र ने यह कठोर बात कही । दन्तवक्र बोला- तुम समस्त यादव, वृष्णिवंशी और अन्धकवंशी लोग स्वल्पशक्ति वाले, तुच्छ, रणभूमि से भाग हुए और युद्धभीरु हो। राजा ययाति के शाप तुम्हारा तेज भ्रष्ट हो गया है। तुम राज्य भ्रष्ट और निर्लज्ज हो। मैं अकेला हूँ और तुम बहुसंख्य हो तथापि अधर्म-मार्ग पर चलने वाले तथा धर्मशास्त्र की मर्यादा को विलुप्त करने वाले तुम नराधमों ने मेरे साथ युद्ध किया हैं। तुम्हारा पिता श्रीकृष्ण पहले नन्द के पशुओं का चरवाहा था। वह ग्वालों की जूठन खाता था, किंतु आज वही यादवों का ईश्वर बना बैठा है। उसने गोपियो के घर में माखन, दही, घी, दूध और तक्र आदि गोरस की चोरी की थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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