गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 8
श्रीराम कृष्ण की द्वारका लीला का वर्णन प्राडविपाक मुनि ने कहा- युवराज दुर्योधन ! अब भगवान श्रीबलराम और श्रीकृष्ण की द्वार का लीलाओं को संक्षेप में सुनो। धृतराष्ट्र तनय। जब कंस का देहावसान हो गया, तब उसके न रहने पर भी उसके साथ अन्तर्गत मैत्री का निर्वाह करने के लिये जरासंध आया। भगवान ने उस पर विजय प्राप्त की। तदनन्तर समुद्र के बीच में द्वार का दुर्ग का निर्माण किया। फिर एक ही रात्रि में अपने सारे बन्धु बान्धवों को वहाँ भेजकर उनके रहने की व्यवस्था की। कालयवन के आने पर मुचुकुन्द द्वारा उसका वध करवाया। तदनन्तर बलरामजी और श्रीकृष्ण दोनों प्रवर्षण पर्वत पर गये और वहाँ से द्वारका को प्रस्थान किया। ब्रह्मलोक से लौटे हुए राजा रेवत ने रत्न आदि आभूषणों से अलंकृत कन्या रेवती को लेकर आगमन किया और प्रतापी बलरामजी के हाथों में उसे सविधि समर्पण कर दिया। फिर राजा रेवत तप करने के लिये बदरिकाश्रम को चले गये। उसके बाद श्रीकृष्ण ने कुण्डिनपुर जाकर शत्रुओं के देखते-देखते रुक्मिणीजी का हरण किया एवं जाम्बवती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रविन्दा, नाग्नजिती, भद्रा और लक्ष्मणा का एवं भौमासुर का वध करके सोलह हजार एक सौ राजकन्याओं का पाणिग्रहण किया। राजन ! भीष्मक कुमारी रुक्मिणी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण के प्रथम पुत्र प्रद्युम्न हुए। ये कामदेव के अवतार अपने पिता श्रीकृष्ण के समान ही सुन्दर थे। इनसे अनिरुद्ध का जन्म हुआ, जो ब्रह्म के अवतार हैं। ततपश्चात् एक समय राजा उग्रसेन के यहाँ राजसूययज्ञ का प्रस्ताव हुआ और दिग्विजय के लिये प्रद्युम्नजी ने बीड़ा उठा लिया। यादवों तथा अपने भाइयों के साथ उन्होंने विजय यात्रा आरम्भ की और जम्बू द्वीप के नौ खण्डों पर विजय प्राप्त करके कामदुघ नद के समीप पहुँचे। वहाँ वसन्त मालती नामक नगरी के स्वामी गन्धर्व राजपतंग के साथ उनका युद्ध हुआ। गदा युद्ध आरम्भ होने पर बलदेवजी के छोटे भाई गद ने गदा के द्वारा बड़े वेग से गद के हृदय पर आघात किया। इस प्रकार दो घड़ी तक दोनों का युद्ध होने के पश्चात् पतंग की गदा के प्रहार से क्षण भर के लिये गद को मूर्च्छा आ गयी। उस समय हाहाकार मच गया और इसी बीच करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी बलभद्रजी वहाँ प्रकट हो गये। उन्होंने गन्धर्वों की सारी सेना को हल की नोक के द्वारा खींच लिया और उसके ऊपर कठोर मुसल का प्रहार करना आरम्भ कर दिया। इससे पतंग की सारी सेना-शूरवीर योद्धा, हाथी और रथ सभी चूर-चूर हो गये। तब तो रथहीन पतंग भयभीत होकर अपने नगर को चला गया और यादवों से युद्ध करने के लिये फिर से व्यूहाकार सेना सजाने लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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