गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 10
द्वारकापुरी, गोमती और चक्रतीर्थ का महात्म्य; कुबेर के वैष्णवयज्ञ में दुर्वासा मुनि द्वारा घण्टानाद और पार्श्वमौलि को शाप बहुलाक्ष ने पूछा- मुनिश्रेष्ठ! कल्याणस्वरूपा द्वारका से द्वारकानगरी की भमि सर्वतीर्थमयी है, अत: वहाँ के मुख्य-मुख्य तीर्थों को मुझे बताइये। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! द्वारका से प्रभास तक की सीमा बनाकर जो तीर्थमयी यज्ञभूमि है, वही मोक्षदायिनी ‘द्वारका’ है। उसका विस्तार सौ योजन है। द्वारका नगरी का दर्शन करके नर नारायण हो जाता है। द्वारका में कोई गधा भी मर जाय तो वह चतुर्भुज होकर वैकुण्ठलोक में जाता है। जो द्वारका का दर्शन करता है, उसकी कथा सुनता है तथा कभी ’द्वारका’ इस नाम का उच्चारण करता है, अथवा वहाँ दर्शन– स्नान करके तिनके का भी दान करता है वह मृत्यु के पश्चात परमगति को प्राप्त होताहै। एक समय भक्त रेवत को प्रेमानन्द में आकुल देख श्रीहरि ने उसे अपेन स्वरूप का दर्शन कराया। उस समय उनके मुँह पर अश्रुधारा बह चली थी। भगवान के नेत्र बिन्दुओं से महानदी गोमती प्रकट हुई, जिसके दर्शनमात्र से ब्रह्महत्या- जैसे पातको से छुटकारा मिल जाता है। जो मनुष्य गोमती-तट की पवित्र रज लेकर अपने सिर पर धारण करता है, वह सौ जन्मों के किये हुए पाप से तत्काल मुक्त हो जाता है– इसमें संशय नहीं है। मनुष्य कहीं भी स्नान करते समय यदि ’गोमती’- इस नाम का उच्चारण कर लेता है ता उसे निस्संदह गोमती में स्नान करने का पुण्य फल प्राप्त हो जात है। विदेहराज ! जो मकर-राशि में सूर्य के स्थित रहते समय माघ मास में प्रयाग की त्रिवेणी में स्नान करता है, वह सौ अश्वमेध-यज्ञों का पुण्य फल पा लेता है; परंतु यदि वह सूर्य के मकरगत होने पर गोमती में स्नान कर ले तो उसे प्रयाग स्नान की अपेक्षा सहस्त्र गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है। गोमती का माहात्मय अताने में चार मुखों वाले ब्रह्मा भी समर्थ नही हैं। गोमती के ’चक्रतीर्थ’ में जो-जो पाषाण हैं, वे सब के-सब चक्रभाव को प्राप्त होता है; अत: उनकी यत्नपूर्वक पूजा करनी चाहिये। जो चक्र के चिन्ह से युक्त होने पर भी चक्रपाणि के पद को प्राप्त होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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