गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 13
शाल्व आदि देशों तथा द्विविद वानर पर प्रद्युम्न की विजय; लंका से विभिषण का आना और उनहें भेंट समर्पित करना मदमत द्विविद उस रथ के आसपास उछलने लगा और अपनी पूँछ से घोड़ा सहित रथ, ध्वज और छत्र को कम्पित करने लगा। प्रद्युम्न ने अपने धनुष की कोटि से उसका गला पकड़कर खींचा। तब अत्यनत कुपित हुए उस वानर ने उनके ऊपर मुक्के से प्रहार किया। तदननतर प्रद्युम्न ने विधिपूर्वक धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायी और कान तक खींचकर छोड़ गये एक बाण से द्विविद को बींध दिया। राजेन्द्र ! उस बाण ने आकाश में आधे पहर तक द्विविद को घुमाकर सौ योजन दूर लंका में गिरा दिया। वहाँ दो घड़ी तक राक्षसों के साथ उसका युद्ध हुआ और उसने राक्षसों को मार गिराया। राजन ! इधर यदुकुल-तिलक प्रद्युम्न ने दुनदुभिनाद करते हुए विजय प्राप्त करके शाल्व से भेंट ली और दक्षिण-मथुरा का दर्शन करके वे त्रिकूट पर्वत पर जा चढ़ा। उधर वानरराज द्विविद त्रिकूट से मैनाक के शिखर पर गया, मैनाक से सिंहल जाकर वह पुन: भारतवर्ष में आया। धीरे-धीरे वानरेनद्र द्विविद हिमालय पर गया और हिमालय के शिखर से प्राग्ज्योतिषपुर को जा पहुँचा। यादवेश्वर प्रद्युम्न मल्लारदेश के अधिपति रामकृष्ण पर विजय पाकर महाक्षेत्र सेतुबनध तीर्थ में गये। महावीर श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न शतयोजन विस्तृत ठहर गये। वहाँ साम्ब आदि भाइयों और अक्रूर आदि अपने यादवों को बुलाकर योगेश्वर प्रद्युम्न ने सभा में उद्धव से कहा । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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