गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 12
दिव्यादिव्य, त्रिगुणवृत्तिमयी भूतल-गोपियों का वर्णन तथा श्रीराधा सहित गोपियों की श्रीकृष्ण के साथ होली श्रीनारदजी कहते हैं– मिथिलेश्वर ! यह मैंने तुमसे गोपियों के शुभ चरित्र का वर्णन किया है, अब दूसरी गोपियों का वर्णन सुनो। वीतिहोत्र, अग्निभुक्, साम्बु, श्रीकर, गोपति, श्रुत, व्रजेश, पावन तथा शान्त– ये व्रज में उत्पन्न हुए नौ उपनन्दों के नाम हैं। वे सब-के-सब धनवान, रूपवान, पुत्रवान बहुत-से शास्त्रों का ज्ञान रखने वाले, शील-सदाचारादि गुणों से सम्पन्न तथा दान परायण हैं। इनके घरों में देवताओं की आज्ञा के अनुसार जो कन्याएँ उत्पन्न हुई, उनमें से कोई दिव्य, कोई अदिव्य तथा कोई त्रिगुणवृत्ति वाली थीं। वे सब नाना प्रकार के पूर्वकृत पुण्यों के फलस्वरूप भूतलपर गोपकन्याओं के रूप में प्रकट हुई थीं। विदेहराज ! वे सब श्रीराधिका के साथ रहने वाली उनकी सखियाँ थी। एक दिन की बात है, होलिका-महोत्सव पर श्रीहरि को आया हुआ देख उन समस्त व्रज गोपिकाओं ने मानिनी श्रीराधा से कहा। गोपियाँ बोलीं– रम्भोरू ! चन्द्रवदने ! मुध-मानिनि ! स्वामिनि ! ललने ! श्रीराधे ! हमारी यह सुन्दर बात सुनो। ये व्रजभूषण नन्दनन्दन तुम्हारी बरसाना नगरी के उपवन में होलिकोत्सव विहार करने के लिये आ रहे हैं। शोभा सम्पन्न यौवन के मद से मत्त उनके चंचल नेत्र घूम रहे हैं। घुँघराली नीली अलकावली उनके कंधों और कपोलमण्डल को चूम रही है। शरीर पर पीले रंग रेशमी जामा अपनी घनी शोभा बिखेर रहा है। वे बजते हुए नूपुरों की ध्वनि से युक्त अपने अरूण चरणाविन्दों द्वारा सबका ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। उनके मस्तक पर बालक रवि के समान कान्तिमान मुकुट है। वे भुजाओं में विमल अंगद, वक्ष:स्थल पर हार और कानों में विद्युत को भी विलज्जित करने वाले मकराकार कुण्डल धारण किये हुए हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |