गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 11
लक्ष्मी जी की सखियों का वृषभानुओं के घरों में कन्या रूप से उत्पन्न होकर माघ मास के व्रत से श्रीकृष्ण को रिझाना और पाना श्रीनारदजी कहते हैं– मिथिलेश्वर ! अब दूसरी गोपियों का भी वर्णन सुनो, जो समस्त पापों को हर लेने वाला, पुण्यदायक तथा श्रीहरि के प्रति भक्ति भाव की वृद्धि करने वाला है। राजन ! व्रज में छ: वृषभानु उत्पन्न हुए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं– नीतिवित्, मार्गद, शुक्ल, पतंग, दिव्यावाहन तथा गोपेष्ट (ये नामानुरूप गुणों वाले थे) उनके घर में लक्ष्मीपति नारायण के वरदान से जो कुमारियाँ उत्पन्न हुई, उनमें से कुछ तो रमा-वैकुण्ठवासिनी और कुछ समुद्र से उत्पन्न हुई लक्ष्मीजी की सखियाँ थीं, कुछ अजितपदवासिनी और कुछ उर्ध्व वैकुण्ठलोक निवासिनी देवियाँ थीं, कुछ लोकाचलवासिनी समुद्रसम्भवा लक्ष्मी सहचारियाँ थीं। उन्होंने सदा श्रीगोविन्द के चरणारविन्द का चिन्तन करते हुए माघ मास का व्रत किया। उस व्रत का उद्देश्य था- श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना। माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को, जो भावी वसन्त के शुभागमन का सूचना प्रथम दिन है, उनके प्रेम की परीक्षा लेने के लिये श्रीकृष्ण उनके घर के निकट आये। वे व्याघ्रचर्म का वस्त्र पहने, जटाके मुकुट बाँधे, समस्त अंगो में विभूति रमाये योगी के वेष में सुशोभित हो, वेणु बजाते हुए जगत् के लोगों का मन मोह रहे थे। अपनी गलियों में उनका शुभागमन हुआ देख सब ओर से मोहित एवं प्रेम-विहृल हुई गोपांग्नाएं उस तरूण योगी का दर्शन करने के लिये आयीं। उन अत्यंत सुन्दर योगी को देखकर प्रेम और आनन्द डूबी हुई समस्त गोपकन्याएँ परस्पर कहने लगीं। गोपियाँ बोलीं – यह कौन बालक है, जिसकी आकृति नन्दनन्दन से ठीक-ठीक मिलती-जुलती है, अथवा यह किसी धनी राजा का पुत्र होगा, जो अपनी स्त्री के कठोर वचनरूपी बाण से मर्म बिंध जाने के कारण घर से विरक्त हो गया और सारे कृत्यकर्म छोड़ बैठा है। यह अत्यन्त रमणीय है। इसका शरीर कैसा सुकुमार है! यह कामदेव के समान सारे विश्व का मन मोह लेने वाला है। अहो ! इसकी माता, इसके पिता, इसकी पत्नी और इसकी बहिन इसके बिना कैसे जीवित होंगी यह विचार करके सब ओर से झुंड़-की-झुड़ व्रजांगनाएं उनके पास आ गयीं और प्रेम से विह्वल तथा आश्चर्य चकित हो उन योगीश्वर से पूछने लगीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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