गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 18
नन्दा, उपनन्दत और वृषभानुओं का परिचय तथा श्रीकृष्ण की मृदभक्षण लीला श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्ववर ! गोपांगनाओं के घरों में विचरते और माखन चोरी की लीला करते हुए नवकंज लोचन मनोहर श्याम रूपधारी श्रीकृष्ण बालचंद्र की भाँति बढ़ते और लोगों के चित्त चुराते हुए से व्रज में अद्भुत शोभा का विस्तार करते लगे। नौ नन्द नाम के गोप अत्यन्त चंचल श्रीनन्दनन्दन को पकड़कर अपने घर ले जाते और वहाँ बिठाकर उनकी रूपमाधुरी का आस्वादन करते हुए मोहित हो जाते थे। वे उन्हें अच्छी-अच्छी गेंदें देकर खेलाते, उनका लालन-पालन करते, उनकी लीलाएँ गाते और बढ़े हुए आनन्द में निमग्न हो सारे जगत को भूल जाते थे। राजा ने पूछा- देवर्षे ! आप मुझसे नौ उपनन्दों के नाम बताइये। वे सब बड़े सौभाग्यशाली थे। उनके पूर्वजन्म का परिचय दीजिये। वे पहले कौन थे, जो इस भूतल पर अवतीर्ण हुए ? उपनन्दों के साथ ही छ: वृषभानुओं के भी मंगलमय कर्मों का वर्णन कीजिये। श्रीनारदजी ने कहा- गय, विमल, श्रीश, श्रीधर, मंगलायन, मंगल, रंगवल्लीश, रंगोजि तथा देवनायक- ये ‘नौ नन्द ’ कहे गये हैं, जो व्रज के गोकुल में उत्पन्न हुए थे। वीतिहोत्र, अग्निभुक, साम्ब , श्रीवर, गोपति, श्रुत, व्रजेश, पावन तथा शान्त- ये ‘उपनन्द - कहे गये हैं। नीतिवित्, मार्गद, शुक्ल, पतंग, दिव्यवाहन और गोपेष्ट- ये छ: ‘वृषभानु’हैं, जिन्होंने व्रज में जन्म धारण किया था। जो गोलोकधाम में श्रीकृष्णचंद्र के निकुञ्जद्वार पर रहकर हाथ में बेंत लिये पहरा देते थे, वे श्याेम अंगवाले गोप व्रज में ‘नौ नन्द‘ के नाम से विख्यात हुए। निकुञ्ज में जो करोड़ों गायें है, उनके पालन में तत्पर, मोरपंख और मुरली धारण किये उसके छहो द्वारों पर रहा करते हैं, वे ही छ: गोप यहाँ ‘छ: वृषभानु’ कहलाये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |