गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 47
श्रीकृष्ण सहित यादवों का व्रजवासियों को आश्वासन देकर वहाँ से प्रस्थान श्रीगर्गजी कहते हैं– राजेंद्र ! श्रीकृष्ण का यह चरित्र शास्त्रों में गुप्त रूप से वर्णित है। जिसे मैंने तुम्हारे सामने प्रस्तुत किया है। अब तुम भगवान के अनेक चरित्रों को विस्तारपूर्वक सुनो। इस प्रकार श्रीकृष्ण नंदनगर में आठ दिनों तक रह कर सब लोगों को आनंद प्रदान करते रहे। इसके बाद पुन: उन्होंने वहाँ से जाने का विचार किया । श्रीकृष्ण की माता यशोदा अपने प्राणों से भी प्यारे पुत्र को जानने के लिए उद्यत देख पहले की भाँति ही उच्च स्वरों से रोदन करने लगी। नृपेश्वर ! वहाँ गोपियों के भी नेत्र आंसुओं से भर आए और वे घर–घर में पहले के दुखों को याद करके करुण भाव से रोदन करने लगीं। सांत्वना देने में कुशल श्रीहरि ने जितनी व्रजांगनाएँ थीं उतने ही रूप धारण करके उन सबको पृथक पृथक आश्वासन दिया तथा श्रीराधा को भी धीरज बंधाया। इसके बाद भगवान माता यशोदा से बोले– मैया ! शोक न करो, मैं इस उत्तम अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान पूरा करवाकर शीघ्र ही यहाँ आऊँगा। यदि तुम नहीं विश्वास करती हो तो मेरी यह बात सुन लो। मैया ! आज से तुम प्रतिदिन मुझे पुत्र रूप में अपने पास देखोगी। मैं भक्ति भाव से स्मरण करने पर काल के भय को भी नाश करने वाला हूँ । इस प्रकार यशोदाजी को आश्वासन देकर नेत्रों में आंसू भरे श्रीहरि नंदसदन से बाहर निकले और गोपों के साथ अपने पौते अनिरुद्ध की सेना में गए। नृपश्रेष्ठ ! अनिरुद्ध की सेना में पहुँच कर साक्षात नारायण श्रीहरि ने यादवों को घोड़ा छोड़ने के लिए आज्ञा दी। श्रीकृष्णचंद्र से प्रेरित होकर उनके पौत्र अनिरुद्ध ने यत्नपूर्वक अश्व का पूजन किया और पुन: पूर्ववत विजय यात्रा के लिए उसे छोड़ दिया । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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