गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 50
कौरवों की पराजय और उनका भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर भेंट सहित अश्व को लौटा देना श्रीगर्गजी कहते हैं– नृपेश्वर ! उसी समय भोज, वृष्णि और अंधक आदि समस्त यादव तथा मथुरा और शूरसेन प्रदेश के महासंग्राम कर्कश एवं बलवान योद्धा यमुनाजी को पार करके पैरों की धूलि से आकाश को व्याप्त और पृथ्वी को कंपित करते हुए वहाँ आ पहुँचे। घोड़े को सब ओर देखते और खोजते हुए महाबलवान श्रीकृष्ण आदि और अनिरुद्ध आदि महावीर भी आ गए। वृष्णिवंशियों ने दूर से ही वहाँ युद्ध का भयंकर महाघोष, कोदण्डों की टंकार, शतघ्नियों की गूंजती हुई आवाज, शूरों की सिंह गर्जना, शस्त्रों के परस्पर टकराने के चट चट शब्द, कोलाहल और हाहाकार सुना। सुनकर वे बड़े विस्मित हुए। जब उन्हें मालूम हुआ कि यादवों का कौरवों के साथ घोर युद्ध छिड़ गया है तो अनिष्ट की शंका मन में लिए अनिरुद्ध और श्रीकृष्ण आदि यदुकुल शिरोमणि महापुरुष बड़े वेग से वहाँ आए। नरेश्वर ! अनिरुद्ध आदि के साथ हमारी सहायता करने के लिए सेना सहित श्रीकृष्ण आ पहुँचे हैं, यह देखकर साम्ब आदि ने उनको प्रणाम किया। श्रीकृष्ण के पधारने पर रणभेरियां बजने लगीं। शंख और गोमुखों के शब्द गूंज उठे, आकाश में स्थित देवता फूलों की वर्षा तथा भूतल पर विद्यमान यादव जय–जयकार करने लगे। समरांगण में सौ अक्षौहिणी सेना के साथ भूतल को कंपित करते हुए महाबली अनिरुद्ध आ पहुँचे हैं। यह देख कौरव योद्धा भय से भागने लगे। प्रलयकाल के समुद्र की भाँति उमड़ती हुई अंधक वंशियों की उस विशाल वाहिनी को देख कर वैश्य लोग डर के मारे भाग गए। घर–घर में अर्गला लग गई। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्री समुदाय दुर्योधन को कोसते हुए गाली देते हुए घर से निकल गए तथा रोदन करने लगे । तदनंतर मूर्च्छा छोड़कर दु:शासन का बड़ा भाई दुर्योधन तत्काल सोकर उठे हुए के समान जाग उठा। उस समय यादव सेना पर उसकी दृष्टि पड़ी। यादवों की वह विशाल सेना देखते ही दुर्योधन आशंकित हो गया और डर के मारे पैदल ही अपने नगर में चला गया। कर्ण, भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, भूरि और दुर्योधन आदि ने सभा भवन में जाकर धृतराष्ट्र को नमस्कार करके सारा हाल कह सुनाया। अपने पक्ष की परायज यादवों की विजय तथा श्रीकृष्ण का शुभागमन सुनकर राजा ने विदुर से पूछा । धृतराष्ट्र बोले– वीर ! सौ अक्षौहिणी सेना लेकर क्रोध से भरे हुए वासुदेव श्रीकृष्ण यहाँ चढ़ आए हैं। ऐसी दशा में हम लोग क्या करें। यह बताओ। महाराज धृतराष्ट्र की यह बात सुनकर विदुर ठहाका मारकर हंस पड़े और बोले । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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