गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 15
श्रीराधा का गवाक्ष मार्ग से श्रीकृष्ण के रूप का दर्शन करके प्रेम-विह्वल; ललिता का श्रीकृष्ण से राधा की दशा का वर्णन करना और उनकी आज्ञा के अनुसार लौटकर श्रीराधा को श्रीकृष्ण - प्रीत्यर्थ सत्कर्म करने की प्रेरणा देना नारदजी कहते हैं- राजन ! यह मैंने तुम से कालिय-मर्दन रूप पवित्र श्रीकृष्ण-चरित्र कहा। अब और क्या सुनना चाहते हो। बहुलाश्व बोले- देवर्षे ! जैसे देवता अमृत पीकर तथा भ्रमर कमल-कर्णिका का रस लेकर तृप्त नहीं होते, उसी प्रकार श्रीकृष्ण की कथा सुनकर कोई भी भक्त तृप्त नहीं होता (वह उसे अधिकाधिक सुनना चाहता है)। जब शिशुरूपधारी परमात्मा श्रीकृष्ण रास करने के लिये भाण्डीर वन में गये और उनका यह लघुरूप देखकर श्रीराधा मन ही मन खेद करने लगीं, तब देववाणी ने कहा-‘कल्याणी! सोच न करो। मनोहर वृन्दावन में महात्मा श्रीकृष्ण के द्वारा तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा।’ देववाणी द्वारा इस प्रकार कहा गया वह मनोरथ का महासागर किस तरह पूर्ण हुआ और उस मनोहर वृन्दावन में भगवान श्रीकृष्ण किस रूप में प्रकट हुए? उस वृन्दा-विपिन में साक्षात परिपूर्णतम भगवान ने श्रीराधा के साथ मनोहर रास-क्रीड़ा किस प्रकार की ? नारद जी ने कहा- राजन ! तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया। मैं उस मंगलमय भगवच्चरित्र का, उस मनोहर लीलाख्यान का, जो देवताओं क्ओ भी पूर्णतया ज्ञात नहीं है, वर्णन करता हूँ। एक दिन की बात है, श्रीराधा की दो प्रधान सखियाँ, शुभस्वरूपा ललिता और विशाखा, वृषभानु के घर पहुँचकर एकांत में श्री राधा से मिलीं। सखियाँ बोलीं- राधे ! तुम जिनका चिंतन करती हो और स्वत: जिनके गुण गाती रहती हो, वे भी प्रतिदिन ग्वाल-बालों के साथ वृषभानुपुर में आते हैं। राधे ! तुम्हें रात के पिछले पहर में, जब वे गो-चारण के लिये निकलते हैं, उनका दर्शन करना चाहिये। वे बड़े सुन्दर हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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