गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 44
रागिनियों तथा राग पुत्रों के नाम और वेद आदि के द्वारा भगवान का स्तवन बहुलाश्व ने पूछा- देवर्षे ! रागिनियों और रागपुत्रों के नाम मुझे बताइये; क्योंकि परावरवेत्ता विद्वानों में आप सबसे श्रेष्ठ हैं। नारदजी ने कहा- राजन् ! कालभेद, देशभेद और स्वरमिश्रित क्रिया के भेद से विद्वानों ने गीत के छप्पन करोड़ भेद बताये हैं। नृपेश्वर ! इन सब के अन्तर्भेद तो अन्नत हैं। नृपेश्वर ! इन सब के अन्तर्भेद तो अनन्त हैं। आनन्द स्वरूप जो शब्द ब्रह्ममय श्रीहरि हैं, इन्हीं को तुम-राग समझो। इसलिये भूतल पर इन सबके जो मुख्य–मुख्य भेद हैं, उन्हीं का मैं तुम्हारे सामने वर्णन करूँगा। भैरवी, पिंगला, शंकी, लीलावती और आगरी- ये भैरवराग की पाँच रागिनियाँ बतलायी गयी हैं। महर्षि, समृद्ध, पिंगला, मागध, बिलाबल, वैशाख, ललित और पंचम- ये भैरव राग के भिन्न-भिन्न आठ पुत्र बतलाये गये हैं। मिथिलेश्वर ! चित्रा, जय जयवन्ती, विचित्रा, व्रजमल्लारी, अन्धकारी- ये मेघमल्लार राग की पाँच मनोहारिणी रागिनियाँ कही गयी हैं। श्यामकार, सोरठ, नट, उड्डायन, केदार, व्रजरहस्य, जल धार और विहाग- ये मल्लारराग के आठ पुत्र प्राचीन विद्वानों ने बताये हैं। कज्जु की, मंचरी, टोडी, गुर्जरी और शाबरी- ये दीपक राग की पाँच रागिनियाँ विख्यात हैं। विदेहराज ! कल्याण, शुभकाम, गौड़ कल्याण, कामरूप, कान्हरा, राम संजीवन, सुखनामा और मन्दहास- ये विद्वानों द्वारा दीपक राग के आठ पुत्र कहे गये हैं। मिथिलेश्वर ! गान्धारी, वेद गान्धारी, धनाश्री, स्वर्मणि तथा गुणागरी ये पांच रागमण्डल में मालकोशराग की रागिनियाँ कही गयी हैं। मेघ, मचल, मारु माचार, कौशिक, चन्द्रहार, घुंघट, विहार तथा नन्द- ये मालकोश राग के आठ पुत्र बतलाये गये हैं। राजेन्द्र ! बैराटी, कर्णाटी, गौरी, गौरावटी तथा चतुश्चन्द्र काला- ये पुरातन पण्डितों द्वारा कही गयी श्रीराग की विख्यात पाँच रागिनियाँ हैं। महाराज ! सारंग, सागर, गौर, मरुत, पंचशर, गोविन्द, हमीर तथा गीर्भीर- ये श्रीराग के आठ मनोहर पुत्र हैं। वसन्ती, परजा, हेरी, तैलग्ड़ी और सुन्दरी ये हिन्दोल राग की पांच रागिनियाँ प्रसिद्ध हैं। मैथिलेन्द्र ! मंगल, वसन्त, विनोद, कुमुद, वीहित, विभास, स्वर तथा मण्डल विद्वानों द्वारा ये आठ हिन्दोल राग के पुत्र कहे गये हैं। बहुलाश्व ने पूछा- शब्द ब्रह्मरूप श्रीहरि के साक्षात स्वरूप महात्मा निगम (भेद्) के, जो रागमण्डल में हिन्दोल के नाम से विख्यात हैं, पृथक-पृथक अंग इस भूतल पर कौन-कौन से हैं यह मुझे बताइये। श्रीनारदजी ने कहा- राजन् ! वेदस्वरूप श्रीहरि का मुख ‘व्याकरण’ कहा गया है, पिंगल कथित ‘छन्द:शास्त्र’ उनका पैर बताया जाता है, ‘मीमांसाशास्त्र’ (कर्मकाण्ड) हाथ है, ‘ज्योतिष शास्त्र’ को नेत्र बताया गया है। ‘आयुर्वेद’ पृष्ठ देश, ‘धनुर्वेद’ वक्ष:स्थल, ‘गान्धर्ववेद’ रसना और ‘वैशेषिक शास्त्र’ मन है। सांख्य बुद्धि, न्यायवाद अहंकार और वेदान्त महात्मा वेद का चित्त है। मिथिलेश्वर ! रागरूप जो शास्त्र है, उसे वेदराज का विहार स्थल समझो। राजन् ! ये सब बातें तुम्हें बतायीं। अब और क्या सुनना चाहते हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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