गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 8
शिशुपाल के मित्र द्युमान तथा शक्त का वध नरेश्वर ! शिशुपाल की महासेना प्रलयकाल के महासगार के समान उमड़ती हुई आ रही थी। उसे देखकर यदुवंशी वीर भगवान श्रीकृष्ण को ही जहाज बनाये, उस सैन्य सागर से पर होने के लिये सामने आये। महाबली द्युमान शिशुपाल से प्रेरित हो ‘वाहिनी’ सेना सहित आगे बढ़कर योद्धाओं के साथ युद्ध करने लगा। समरांगण में दोनों सेनाओं की बाण-वर्षा से अन्धकार छा गया। घोड़ा की टापों से इतनी धूल उड़ी कि आकाश आच्छादित हो गया। नरेश्वर ! दौड़ते हुए घोड़े उछलकर हाथियों के मस्तक पर पांव रख देते थे और घायल हुए हाथी युद्धभूमि में पैरों से शत्रुओं को गिराते ओर सूँड की फुफकारों से इधर-उधर फेंकते-कुचलते आगे बढ़ रहे थे। उनके मस्तक पर कस्तूरी और सिन्दूर से पत्र-रचना की गयी थी और पीठ पर लाल रंग की ढूल उनकी शोभा बढ़ाती थी। पैदल सैनिक बाणों, गदाओं, तलवारों, शूलों और शक्तियों की मार से अंग-अंग कट जाने के कारण धराशायी हो रहे थे। उनके पैर, घुटने और बाहुदण्ड छिन्न-भिन्न हो गये। राजन्! कोई अपनी तीखी तलवार से युद्ध में घोड़ों के दो टुकडे़ कर देता था। कितने ही वीर हाथियों के दाँत पकड़कर उनके मस्तों पर चढ़ जाते थे और सिंह की भाँति महावतों तथा हाथी-सवारों को चीर-फाड़ डालते थे। बहुत-से महाबली घुड़सवार योद्धा हाथियों के समूह को फाँदकर शत्रु-सैनिकों पर खड्ग का प्रहार करते और उन्हें घोड़ों की पीठ से उनका स्पर्श ही नहीं होता है। वे नटों की तरह विद्युत-वेग से घोड़ा पर चढ़ते-उतरते रहते थे । शत्रुओं की सेना का वेगपूर्वक आक्रमण होता देख अक्रूर सामने आये। वर्षा की वर्षा से दुर्दिन का दृश्य उपस्थित कर दिया। द्युमान ने भी अपने धनुष से छूटे हुए बाण-समूहों की बौछार से अक्रुर को आच्छादित कर दिया- ठीक उसी तरह, जैसे बादल वर्षकाल के सूर्य को ढक देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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