गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 21
दावानल से गौओं और ग्वालों का छुटकारा तथा विप्रपत्नियों को श्रीकृष्ण का दर्शन श्रीनारदजी कहते हैं– राजन् ! तदनन्तर श्रीबलराम सहित समस्त ग्वाल-बाल खेल में आसक्त हो गये। उधर सारी गौएँ घास के लोभ से विशाल वन में प्रवेश कर गयीं। उनको लौटा लाने के लिये ग्वाल-बाल बहुत बड़े मूँज के वन में जा पहुँचे। वहाँ प्रलयाग्नि के समान महान दावानल प्रकट हो गया। उस समय गौओं सहित समस्त ग्वाल-बाल एकत्र हो बलराम सहित श्रीकृष्ण को पुकारने लगे और भय से आर्त हो, उनकी शरण ग्रहण कर 'बचाओ, बचाओ !' यों कहने लगे। अपने सखाओं के ऊपर अग्नि का महान भय देखकर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा- 'डरो मत, अपनी आँखे बंद कर लो।' नरेश्वर ! जब गोपों ने ऐसा कर लिया, तब देवताओं के देखते-देखते भगवान गोविन्ददेव उस भयकारक अग्नि को पीकर ग्वालों और गोओं को साथ ले श्रीहरि यमुना के उस पार अशोक वन में जा पहुँचे। वहाँ भूख से पीड़ित ग्वाल-बाल बलराम सहित श्रीकृष्ण से हाथ जोड़कर बोले- 'प्रभो ! हमें बहुत भूख सता रही है। 'तब भगवान ने उनको अंगीरस-यज्ञ में भेजा। वे उस श्रेष्ठ यज्ञ में जाकर नमस्कार करके निर्मल वचन बोले। गोपों ने कहा- ब्राह्मणों ! ग्वाल-बालों और बलरामजी के साथ व्रजराजनन्दन श्रीकृष्ण गौएँ चराते हुए इधर आ निकले हैं, उन सबको भूख लगी है। अत: आप सखाओं सहित उन मदनमोहन श्रीकृष्ण के लिये शीघ्र ही अन्न प्रदान करें । श्रीनारदजी कहते हैं- नरेश्वर ! ग्वाल-बालों की वह बात सुनकर वे ब्राह्मण कुछ नहीं बोले। तब ग्वाल-बाल निराश लौट गये और आकर बलराम-सहित श्रीकृष्ण से इस प्रकार बोले । गोपों ने कहा- सखे ! तुम व्रजमण्डल में ही अधीश बने हुए हो। गोकुल में तुम्हारा बल चलता है और नन्दबाबा के आगे ही तुम कठोर दण्डधारी बने हुए हो। प्रचण्ड सूर्य के समान तेजस्वी तुम्हारा प्रकाशमान दण्ड निश्चय ही मथुरापुरी में अपना प्रभाव नहीं प्रकट करता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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