गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 7
श्रीकृष्ण के हाथों से रुक्मिणी की पराजय तथा द्वारका में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण का विवाह श्रीनारदजी कहते हैं- रुक्मिणी के हरण और मित्रों की पराजय का वृतान्त सुनकर भीष्मकपुत्र रुक्मी ने समस्त भूपालों के सुनते हुए यह प्रतिज्ञा की- ‘राजाओं ! मैं आप लोगों के सामने यह सच्ची प्रतिज्ञा करता हूँ कि युद्ध में श्रीकृष्ण को मारकर रुक्मिणी को लौटाये बिना मैं कुण्डिनपुर में प्रवेश नहीं करुँगा’। यों कहकर उस महा उद्भट वीर ने दिव्य कवच धारण किया, जो ठोस एवं श्याम वर्ण का था। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था, मानो वह नील मेघ से निर्मित हुआ हो। फिर उसने सिर पर सिन्धुदेशीय शिरस्त्राण (टोप) रखा; सौवीर देश का बना हुआ सुन्दर धनुष, लाट देश के दो तरकस, म्लेच्छ देश की तलवार, कुटल देश की ढाल, येठर की महाशक्ति, गुजरात की गदा, बंगाल का परिघ और कोंकण देश का हस्तत्राण (दस्ताना) धारण करके अंगुलियों में गोधा के चर्म से निर्मित अंगुलित्राण बाँध लिया और किरीट, रुक्मी ने युद्ध करने का निश्चय किया। फिर चंचल घोड़ों से युक्त जैत्ररथ पर आरुढ़ हो, दो अक्षौहिणी सेना साथ लिये उसने श्रीकृष्ण का पीछा किया। शत्रुओं की सेना को पुन: आती देख महाबली बलराम ने यादवों की सेना साथ ले समरागंण में उसका सामना किया। रुक्मी बार-बार धनुष टंकारता और कठोर वचन बोलता हुआ अतिरथी देवेश्वर श्रीकृष्ण के पास जा पहुँचा और बोला- ‘अरे ! खड़ा रह, खड़ा रह। यदि जीवित रहाना चाहता है तो तुरंत मेरी बहिन को छोड़ दे। नहीं तो मैं सेना सहित तुझे इसी समय यमलोक को भेज दूँगा। तेरे कुल पर राजा ययाति का शाप लगा हुआ है और तू ग्वालों की जूठन खाने वाला है। जरासंध के भय से भीत रहता है और कालयवन के आगे से पीठ दिखाकर भाग चुका है’। यों कहकर उसने अपने तरकस से एक बाण निकालकर धनुष पर चढा़ दिया और उसे कान तक खींचकर श्रीकृष्ण की छाती को लक्ष्य करके चला दिया। उस बाण से आहत होन पर भी भगवान श्रीकृष्ण ने एक सायक से उसके धनुष की टंकार करने वाली प्रत्यंचा इस प्रकार काट दी, मानो गरुड़ ने किसी सर्पिणी को छिन्न-छिन्न कर डाला हो। फिर रुक्मी ने शीघ्र ही अपने धनुष पर टंकार-ध्वनि करने वाली दूसरी स्वर्णभूषित प्रत्यंचा चढ़ा ली और दस बाणों द्वारा रणभूमि में श्रीहरि को घायल कर दिया। तब श्रीकृष्ण ने एक बाण मारकर रुक्मी के प्रत्यंचा सहित धनुष को उसी क्षण वैसे ही काट दिया, जैसे ज्ञान के द्वारा त्रिगुणात्मक संसार बन्धन को काट दिया जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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