गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 61
भगवान के श्यामवर्ण होने का रहस्य; कलियुग की पापमयी प्रवृत्ति; उससे बचने के लिये श्रीकृष्ण की समाराधना तथा एकादशी-व्रत का माहात्म्य वज्रनाभ ने पूछा- ब्रह्मन ! नारायण स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण तो प्रकृति से परे हैं, फिर उनका रूप श्याम कैसे हुआ ? यह मुझे विस्तारपूर्वक बताइये। विप्रवर ! आप जैसे मुनि श्रीकृष्णदेव श्रीहरि के चरित्र को जैसा मानते हैं, वैसा हम-जैसे लोग कर्म से मोहित होने के कारण नहीं जान पाते। सूतजी कहते हैं- मुने ! वज्रनाभ का यह वचन सुनकर उनसे प्रशंसित हो, उन तत्वज्ञ तथा कृपालु मुनि ने तत्त्वज्ञान कराने के लिये इस प्रकार कहा। गर्गजी बोले- राजन् ! ‘श्रृगार रस’ का रूप भरतादि मुनीश्वरों ने ‘श्याम’ बताया है। उसके देवता श्रीकृष्ण हैं। लावण्य की राशि तथा उज्ज्वल होने के कारण श्रीहरि का सुन्दर रूप उस तरह श्याम है, जैसे मेघों की घटा का रूप दूर से श्याम दिखाई देता है, जैसे नदी का जल कुण्ड विशेष में श्याम दृष्टिगोचर होता है तथा जैसे महान आकाश का रूप श्यामल प्रतीत होता है; परन्तु जल या आकाश उज्ज्वल ही है, कृष्णवर्ण कदापि नहीं है। इसी प्रकार उज्ज्वल लावण्यसिन्धु श्रीकृष्ण श्याम सुन्दर दिखायी देते हैं। जैसे उत्कृष्ट श्वेत वस्त्र में दूसरे को भावनानुसार श्याम आभा दृष्टिगोचर होती है, उसी प्रकार करोड़ों कामदेवों की लीला का आधार होने के कारण संतजन श्रीहरि का श्यामरूप बताते हैं । वज्रनाभ ने पू्छा- मुनिश्रेष्ठ ! आपके इस वचन से मेरे मन का संदेह दूर हो गया। ब्रह्मन ! अब आगे चलकर भूतल पर घोर कलियुग आने वाला है। मुने ! उसमें मनुष्य कैसे होगे, यह बताइये ! आप भविष्य को भी जानते है; अत: मैं आपसे पूछता हूँ और आपको प्रणाम करता हूँ । श्रीगर्गजी ने कहा- राजन् ! कलियुग के दस हजार वर्ष बीतने तक भगवान जगन्नाथ भूतल पर स्थित रहते हैं (उसके बाद सर्वत्र विद्यमान होते हुए भी अविद्यमान की भाँति उसके ऊपर नियंत्रण करना छोड़ देते हैं)। उसके आधे समय (पांच हजार वर्ष) तक गंगाजी के जल में उसकी अधिष्ठात्री देवी गंगा का निवास रहेगा। तदनन्तर कलि से मोहित होकर सब लोग पापी हो जायँगे; अत: नरकों में गिरेंगे। सब की आयु बहुत कम हो जायगी। ब्राह्मण ब्राह्मण से मूल्य लेकर उसे अपनी कन्या देंगे। क्षत्रिय लोग अत्यन्त लोलुप होकर अपनी पुत्री को मार डालेंगे। वैश्य ब्राह्मण के धन का हरण करने में तत्पर हो झूठा व्यापार करेंगे। शूद्रलोग म्लेक्ष्छों के संग से ब्राह्मणों को दूषित करेंगे। ब्राह्मण शास्त्र ज्ञान से शून्य, क्षत्रिय राज्याधिकार से वंचित, वैश्य निर्धन तथा शूद्र अपने स्वामी को दु:ख देने वाले होंगे। सब लोग धर्म-कर्म से दूर रहकर दिन में मैथुन करेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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