गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 27
यादवों द्वारा समुद्र पर बाणमय सेतु का निर्माण श्रीगर्ग कहते हैं- महाराज ! तत्पश्चात् यादवराज अनिरुद्ध ने उद्धवजी को बुलाकर गंभीर वाणी में पूछा– साधु शिरोमणे ! पाञ्चजन्य द्वीप कितनी दूर है, जिसमें उस दैत्य ने मेरा घोड़ा ले जाकर रखा है ? उनका यह प्रश्न सुनकर श्रीकृष्ण के मंत्री, सुहृद् और सखा उद्धव मन ही मन श्रीकृष्ण चरणारविंदों का चिंतन करके यदुकुल नंदन अनिरुद्ध से बोले- भगवन ! सर्वज्ञ ! प्रभो ! लोकेश ! मैं आपकी बात का गौरव रखने के लिए मार्ग में जैसा सुना है, वैसा बता रहा हूँ। नृपेश्वर ! तीस योजन विस्तृत सागर के उस पार दक्षिण दिशा में पाञ्चजन्य नामक उपद्वीप है। उद्धव की बात सुनकर बलवान, धैर्यशाली तथा धनुर्धरों में श्रेष्ठ अनिरुद्ध रोष और उत्साह से भरकर श्रेष्ठ यादव वीरों से बोले। अनिरुद्ध ने कहा– श्रेष्ठतम वीर यादवों ! मैं समुद्र के पार जाऊँगा। इसलिए तुम लोग शीघ्र ही बाणों द्वारा समुद्र के ऊपर सेतु का निर्माण करो उनकी यह बात सुनकर युद्ध कुशल यादव परस्पर हंसते हुए समुद्र के ऊपर बाणों की वर्षा करने लगे। तब समस्त जलचर जंतु तीखें बाणों से घायल हो चीत्कार करते हुए चारों दिशाओं में भाग चले। देवर्षि नारद आकाश में खड़े होकर यह सब कौतुक देख रहे थे। वे बड़े जोर से बोले– तुम लोगों में से किसी के बाण अभी समुद्र के पार तक नहीं पहुँचे हैं। नरेश्वर ! उस समय नारदजी की बात सुनकर अक्रूर, हृदीक, युयुधान, सात्यकि, उद्धव, बलवान कृतवर्मा और सारण आदि वीरों तथा हेमांगद इंद्रनील और अनुशाल्व आदि भूपालों का घमंड चूर–चूर हो गया। तब बलवान अनिरुद्ध ने श्रीकृष्ण चरणारविंदों का चिंतन करके र्शागंधनुष के तुल्य कोदण्ड लेकर उसके द्वारा दिव्य बाण छोड़े। उन बाणों को देखकर देवर्षि बोले– अनिरुद्ध के बाण समुद्र के पार जाकर उसकी तटवर्ती भूमि में प्रविष्ट हो गए हैं । राजन ! देवर्षि का यह वचन सुनकर साम्ब और दीप्तिमान आदि यादवों ने भी बाण छोड़े। उनके भी वे बाण समुद्र के उस पार पहुँच गए। महाराज ! यों करोड़ों बाण घुसते चले गए। यह देख समस्त धनुर्धर आश्चर्यचकित हो गए। इस प्रकार सब यादवों ने जल के ऊपर आकाश में तीस योजन लंबा और एक योजन चौड़ा पुल तैयार कर दिया। चार पहर में इतना बड़ा पुल बांधकर अनिरुद्ध आदि यादव रात्रि के समय अपने शिविरों में सोए। अत: परमात्मा श्रीकृष्ण के शूरवीर पुत्र–पौत्रों के, जो श्रीकृष्ण के ही प्रतिबिम्ब हैं, बल का मैं क्या वर्णन करूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |