गर्ग संहिता
गर्ग संहिता-माहात्म्य : अध्याय 3
राजा प्रतिबाहु के प्रति महर्षि शाण्डिल्य द्वारा गर्गसंहिता के माहात्म्य और श्रवण-विधि का वर्णन शाण्डिल्य ने कहा- राजन् ! पहले भी तो तुम बहुत-से उपाय कर चुके हो, परंतु उनके परिणामस्वरूप एक भी कुलदीपक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। इसलिये अब तुम पत्नी के साथ शुद्ध-हृदय होकर विधिपूर्वक ‘गर्गसंहिता’ का श्रवण करो। राजन् ! यह संहिता धन, पुत्र और मुक्ति प्रदान करने वाली है। यद्यपि यह एक छोटा सा उपाय है, तथापि कलियुग में जो मनुष्य इस संहिता का श्रवण करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु पुत्र, सुख आदि सब प्रकार की सुख-सम्पत्ति दे देते हैं। नरेश ! गर्गमुनि की इस संहिता के नवाह पारायणरूप यज्ञ से मनुष्य सद्य:पावन हो जाते हैं। उन्हें इस लोक में परम सुख की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु के पश्चात् वे गोलोकपुरी में चले जाते हैं। इस कथा को सुनने से रोगग्रस्त मनुष्य रोग-समूहों से, भयभीत भय से और बन्धनग्रस्त बन्धन से मुक्त हो जाता है। निर्धन को धन-धान्य की प्राप्ति हो जाती है तथा मूर्ख शीघ्र ही पण्डित हो जाता है। इस कथा के श्रवण से ब्राह्मण विद्वान, क्षत्रिय विजयी, वैश्य खजाने का स्वामी तथा शूद्र पापरहित हो जाता है। यद्यपि सह संहिता स्त्री–पुरुषों के लिये अत्यन्त दुर्लभ है, तथापि इसे सुनकर मनुष्य सफल मनोरथ हो जाता है। जो निष्कारण अर्थात् कामना रहित होकर भक्तिपूर्वक मुनिवर गर्ग द्वारा रचित इस सम्पूर्ण संहिता को सुनता है, वह सम्पूर्ण विघ्नों पर विजय पाकर देवताओं को भी पराजित करके श्रेष्ठ गोलोकधाम को चला जाता है। राजन् ! गर्गसंहिता की प्रबन्ध-कल्पना परम दुर्लभ है। यह भूतल पर सहस्त्रों जन्मों के पुण्य से उपलब्ध होती है। श्रीगर्गसंहिता के श्रवण के दिनों का कोई नियम नहीं है। इसे सर्वदा सुनने का विधान है। इसका श्रवण कलियुग में भुक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाला है। समय क्षणभंगुर है; पता नहीं कल क्या जाय; इसलिये संहिता-श्रवण के लिये नौ दिन का नियम बतलाया गया है। भूपाल ! श्रोता को चाहिये कि वह ज्ञानपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए एक बार एक अन्न का या हविष्यान्न का भोजन करे अथवा फलाहार करे। उसे विधान के अनुसार मिष्टान्न, गेहूँ अथवाजौ की पूड़ी, सेंधा नमक, कंद, दही और दूध का भोजन करना चाहिये। नृपश्रेष्ठ ! विष्णु भगवान के अर्पित किये हुए भोजन को ही प्रसाद रूप में खाना चाहिये। बिना भगवान का भोग लगाये आहार नहीं ग्रहण करना चाहिये। श्रद्धापूर्वक कथा सुननी चाहिये; क्योंकि यह कथा-श्रवण सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। बुद्धिमान श्रोता को चाहिये कि वह पृथ्वी पर शयन करे और क्रोध तथा लाभ को छोड़ दे। इस प्रकार गुरु के श्रीमुख से कथा सुनकर वह सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है। जो गुरु-भक्ति से रहित, नास्तिक, पापी, विष्णुभक्ति से रहित, श्रद्धाशून्य तथा दुष्ट हैं, उन्हें कथा का फल नहीं मिलता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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