गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 10
कंस के अत्याचार; बलभद्र जी का अवतार तथा व्यासदेव द्वारा उनका स्तवन श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! कंस ने सोचा, वसुदेवजी भयभीत होकर कहीं भाग न जायँ- ऐसा विचार मन में आते ही उसने बहुत से सैनिक भेज दिये। कंस की आज्ञा से दस हजार शस्त्रधारी सैनिकों ने पहुँच कर वसुदेवजी का घर घेर लिया। वसुदेवजी ने यथा समय देवकी के गर्भ से आठ पुत्र उत्पन्न किये, वे क्रमश: एक वर्ष के बाद होते गये। फिर उन्होंने एक कन्या को भी जन्म दिया, जो भगवान की सनातनी माया थी। सर्वप्रथम जो पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम कीर्तिमान था। वसुदेवजी उसे गोद में उठाकर कंस के पास ले गये। वे दूसरे के प्रयोजन को भी अच्छी तरह से समझते थे, इसलिये वह बालक उन्होंने कंस को दे दिया। वसुदेव जी को अपने सत्य वचन के पालन में तत्पर देख कंस को दया आ गयी। साधु पुरुष दु:ख सह लेते हैं, परंतु अपनी कही हुई बात मिथ्या नहीं होने देते। सचाई देखकर किसके मन में क्षमा का भाव उदित नहीं होता? कंस ने कहा- वसुदेवजी ! यह बालक आपके साथ ही घर लौट जाये, इससे मुझे कोई भय नहीं है। परंतु आप दोनों का जो आठवाँ गर्भ होगा, उसका वध मैं अवश्य करूँगा- इसमें कोई संशय नहीं है। श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! कंस के यों कहने पर वसुदेव जी अपने पुत्र के साथ घर लौट आये, परंतु उस दुरात्मा के वचन को उन्होंने तनिक भी सत्य नहीं माना। उस समय आकाश से उतरकर मैं वहाँ गया। उग्रसेन कुमार कंस ने मुझे मस्तक झुकाकर मेरा स्वागत सत्कार किया और मुझ से देवताओं का अभिप्राय पूछा। उस समय मैंने उसे जो उत्तर दिया, वह मुझसे सुनो। मैंने कहा- ‘नन्द आदि गोप वसु के अवतार हैं और वृषभानु आदि देवताओं के। नरेश्वर कंस ! इस व्रजभूमि में जो गोपियाँ हैं, उनके रूप में वेदों की ऋचाएँ आदि यहाँ निवास करती हैं। मथुरा में वसुदेव आदि जो वृष्णिवंशी हैं, वे सब के सब मूलत: देवता ही हैं। देवकी आदि सम्पूर्ण स्त्रियाँ भी निश्चय ही देवांगनाएँ हैं। सात बार गिन लेने पर सभी अंक आठ ही हो जाते हैं। तुम्हारे घातक की संख्या से गिना जाय तो यह प्रथम बालक भी आठवाँ हो सकता है; क्योंकि देवताओं की ‘वामतो गति’ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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