गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 9
श्रीकृष्णा द्वारा वसुदेव देवकी की बन्धन से मुक्ति, श्रीकृष्ण और बलराम का गुरुकुल में विद्याध्ययन तथा गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के मरे हुए पुत्र को यमलोक से लाकर लौटाना, श्रीक्रूर को हस्तिनापुर भेजना तथा कुब्जा का मनोरथ पूर्ण करना श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम साक्षात वृष्णिवंशियों से घिरे हुए देवकी और वसुदेव के समीप गये। नरेश्वर ! अपने दोनों पुत्रों को देखकर उन दोनों के बन्धन उसी प्रकार स्वत: ढीले पड़ गये, जैसे गरुड़ को आया देख नागपाश के बन्धन स्वत: खुल जाते हैं। बलराम सहित श्रीहरि ने माता-पिता को अपने प्रभाव के ज्ञान से सम्पन्न देख तत्काल अपनी माया फैला दी, जो बलपूर्वक जगत् को मोह लेने वाली है। बलराम और कृष्ण मेरे पुत्र हैं, यह जानकर वसुदेवजी मोह से व्याकुल हो गये और आँसू बहाते हुए देवकी के साथ सहसा उठकर उन्होंने दोनों पुत्रों को हृदय से लगा लिया। तब वृष्णिवंशियों से घिरे हुए श्रीहरि ने उन दोनों को आश्वासन दे अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बना दिया। कंस के भय से दूसरे देशों में भगे हुए यादवों को बुलाकर भगवान ने प्रेमपूर्वक यदुपुरी में कुटुम्ब सहित रहने के लिये स्थान दिया। गोपगणों के साथ अपने घर को जाने के लिये उद्यत नन्दराज को प्रणाम करके बलरामसहित श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया से मोहित-सा करते हुए कहा– ‘तात ! अब आप इसी मथुरापुरी में निवास कीजिये। यदि आपके मन में यहाँ से जाने की इच्छा उठ खड़ी हुई हो, तो जाइये। मैं भी यदुवंशियों व्यवस्था करके भैया बलराम के साथ आपके पास आ जाउँगा’। नारदजी कहते हैं– राजन् ! इस प्रकार बलराम और श्रीकृष्ण के द्वारा पूजित एवं सम्मानित नन्दराज वसुदेवजी को हृदय से लगाकर प्रेमातुर हो वज्र को चले गये। वसुदेवजी ने श्रीकृष्ण के जन्म-नक्षत्र पर जो पहले दस लाख गोदान करने का संकल्प किया था, उसे पूरा करने के लिये उतनी गौओं को वस्त्र और मालाओं से अलंकृत करके ब्राह्मणों को दे दिया। फिर धर्मज्ञ वसुदेव ने गर्गाचार्य को बुलाकर श्रीकृष्ण और बलभद्र का विधिवत यज्ञोपवीत संस्कार करवाया। तदनन्तर समस्त विद्याओं का अध्ययन करने के लिये उद्यत हो परमेश्वर बलराम और श्रीकृष्ण साधारण जनों की भाँति गुरु सांदीपनि के पास आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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