गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 1
जरासंध का विशाल सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण; श्री कृष्ण और बलराम द्वारा उसकी सेना का संहार; मगधराज की पराजय तथा श्रीकृष्ण–बलराम का मथुरा में विजयी होकर लौटना कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च । वसुदेव के पुत्र और देवकीनन्दन होने के साथ ही नन्दगोप के भी कुमार हैं, उन सच्चिदानन्दस्वरूप गोविन्द को बारंबार नमस्कार है। बहुलाश्व ने पूछा- मैंने आपके मुख से अद्भुत मथुरा खण्ड की कथा सुनी। अब मुझे श्रीकृष्ण चरितामृत से पूर्ण द्वारका खण्ड सुनाइये। श्रीराम वल्लभ श्रीकृष्ण के कितने विवाह, कितने पुत्र और कितने पौत्र हुए ? महामते ! उनके मथुरा को छोड़कर द्वारका में निवास करने का क्या कारण ? ये सब बातें बताइये। श्रीनारदजी ने कहा- महाबली कंस के मर जाने पर उसकी दो रानियां- अस्ति और प्राप्त्िा बडे़ दु:ख से जरासंध के घर गयीं। उनके मुख से कंस के मरण का वृतान्त सुनकर जरापुत्र महाबली जरासंध अत्यन्त कुपित हो इस भूतल को यदुवंशियों से शून्य कर देने के लिये उद्यत हो गया। राजन् ! उस बलवान नरेश ने तेईस अक्षौहिणी सेना लेकर मथुरा पव धावा बोल दिया। महासागर के समान गर्जना करने वाली उसकी सेना और भय से व्याकुल हुई अपनी नगरी को देखकर साक्षात भगवान ने सभा में बलदेवजी से कहा। ‘भैया ! इस मगधराज जरासंध की सारी सेना को तो निस्संदेह नष्ट कर देना चाहिये, किंतु इस मगध नरेश को नहीं मारना चाहिये, जिससे यह पुन: सेना जुटाकर ले आने का उद्योग करे। जरसंध को ही निमित्त बनाकर पृथ्वी के राजाओं के रूप में स्थित पृथ्वी से सारे भार को यहीं रहकर हर लूंगा और साधु पुरुषों का प्रिय करुंगा। राजन् ! भगवान श्रीकृष्ण इस प्रकार बात कर ही रहे थे कि वैकुण्ठ से रथों पर तत्काल आरुढ़ हो महाबली बलराम और श्रीकृष्ण यदुवंशियों की थोड़ी सी सेना साथ लेकर तुरंत ही नगर से बाहर निकले। आकाश में देवताओं के देखते-देखते भूतल पर यादवों और मागधों में अद्भुत रोमांचकारी एवं तुमुल युद्ध होने लगा। पहले महाबली मगधराज रथ पर आरुढ़ हो दस अक्षैहिणी सेना के साथ भगवान श्रीकृष्ण के सामने आकर लड़ने लगा। धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन जरासंध की सहायाता के लिये पांच अक्षौहिणी सेना के साथ आकर यादवों के साथ युद्ध करने लगा। राजन् ! विन्ध्यदेश का बलवान राजा पांच अक्षौहिणी सेना के साथ तथा वंगदेश का महाबली नरेश तीन अक्षौहिणी सेना के साथ उस महायुद्ध में जरासंध की ओर से सम्मिलित हुआ। मिथिलेश्वर ! इसी तरह दूसरे राजा भी जो जरासंध के वशवर्तीथे, प्राणपन से उसकी सहायता कर रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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