गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 26
श्रीकृष्ण का विरजा के साथ विहार; श्रीराधा के भय से विरजा का नदी रूप होना, उसके सात पुत्रों का उसी शाप से सात समुद्र होना तथा राधा के शाप से श्रीदामा का अंशत: शंखचूड़ होना बहुलाश्व ने पूछा- महामते देवर्षे ! आप परावरवेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं। अत: यह बताइये कि अघासुर आदि दैत्यों की ज्योति तो भगवान श्रीकृष्ण में प्रविष्ट हुई थी, परंतु शंखचूड़ का तेज श्रीदामा में लीन हुआ; इसका क्या कारण है ? अहो ! श्रीकृष्ण चन्द्र का चरित्र अत्यंत अद्भुत है। श्री नारद जी बोले- महामते नरेश ! यह पूर्वकाल में घटित गोलोक का वृत्तांत है, जिसे मैंने भगवान नारायण के मुख से सुना था। यह सर्वपापहारी पुण्य-प्रसंग तुम मुझसे सुनो। श्रीहरि के तीन पत्नियाँ हुई- श्रीराधा, विजया (विरजा) और भूदेवी। इन तीनों में महात्मा श्रीकृष्ण को श्रीराधा ही अधिक प्रिय हैं। राजन! एक दिन भगवान श्रीकृष्ण एकांत कुंज में कोटि चन्द्रमाओं की-सी कांति वाली तथा श्रीराधिका-सदृश सुन्दरी विरजा के साथ विहार कर रहे थे। सखी के मुख से यह सुनकर कि श्रीकृष्ण मेरी सौत के साथ हैं, श्रीराधा मन-ही-मन अत्यंत खिन्न हो उठी। सपत्नी के सौख्य से उनको दु:ख हुआ, तब भगवान-प्रिया श्रीराधा सौ योजन विस्तृत, सौ योजन ऊँचे और करोड़ों अश्विनियों से जुते सूर्य तुल्य कांतिमान रथ पर-जो करोड़ों पताकाओं और सुवर्ण-कलशों से मण्डित था तथा जिसमें विचित्र रंग के रत्नों, सुवर्ण और मोतियों की लड़ियाँ लटक रही थीं-आरूढ़ हो, दस अरब वेत्रधारिणी सखियों के साथ तत्काल श्रीहरि को देखने के लिये गयीं। उस निकुंज के द्वार पर श्रीहरि के द्वारा नियुक्त महाबली श्रीदामा पहरा दे रहा था। उसे देखकर श्रीराधा ने बहुत फटकारा और सखीजनों द्वारा बेंत से पिटवाकर सहसा कुंजद्वार के भीतर जाने को उद्यत हुईं। सखियों का कोलाहल सुनकर श्रीहरि वहाँ से अंतर्धान हो गये । श्रीराधा के भय से विरजा सहसा नदी के रूप में परिणत हो, कोटियोजन विस्तृत गोलोक में उसके चारों ओर प्रवाहित होने लगीं। जैसे समुद्र इस भूतल को घेरे हुए है, उसी प्रकार विरजा नदी सहसा गोलोक को अपने घेरे में लेकर बहने लगीं। रत्नमय पुष्पों से विचित्र अंगों वाली वह नदी विविध प्रकार के फूलों की छाप से अंकित उष्णीष वस्त्र की भाँति शोभा पाने लगीं- ‘श्रीहरि चले गये और विरजा नदी रूप में परिणत हो गयी’- यह देख श्रीराधिका अपने कुंज को लौट गयीं। नृपेश्वर ! तदनंतर नदी रूप में परिणत हुई विरजा को श्रीकृष्ण ने शीघ्र ही अपने वर के प्रभाव से मूर्तिमती एवं विमल वस्त्राभूषणों से विभूषित दिव्य नारी बना दिया। इसके बाद वे विरजा-तटवर्ती वन में वृन्दावन के निकुंज में विरजा के साथ स्वयं रास करने लगे। श्रीकृष्ण के तेज से विरजा के गर्भ से सात पुत्र हुए। वे सातों शिशु अपनी बाल क्रीड़ा से निकुंज की शोभा बढ़ाने लगे। एक दिन उन बालकों में झगड़ा हुआ। उनमें जो बड़े थे, उन सब ने मिलकर छोटे को मारा। छोटा भयभीत होकर भागा और माता की गोद में चला गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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