गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 4
रेवती का उपाख्यान श्री महानन्त ने कहा- तदनन्तर सैकड़ों चन्द्रमाओं के समान कान्तिवाली, तपस्या में संलग्न, नवयौवन, सुन्दरी ज्योतिष्मती पर इन्द्र, यम, कुबेर, अग्नि, वरुण, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनैश्चर की दृष्टि पड़ीं। उसके रूप को देखकर उनके अंदर उसे प्राप्त करने की इच्छा उद्दीप्त हो उठी और वे सम्मोहितचित्त हो गये। तब उन्होंने ज्योतिष्मती के आश्रम पर आकर कहा- 'सुन्दरी ! रम्भोरु ! तुम्हें धन्य है। तुम किसके लिये तप कर रही हो, तुम्हारी अवस्था अभी तप के योग्य नहीं है। तुम अपने मन का अभिप्राय हम लोगों के सामने प्रकट करो। यह सुनकर ज्योतिष्मती बोली कि हजार मुखवाले भगवान अनन्त मेरे स्वामी हों, मैं इसीलिये तप कर रही हूँ। ज्योतिष्मती की यह बात सुनकर इन्द्रादि देवता हंस पड़े और अलग-अलग अपनी बात कहने को तैयार हो गये। उनमें सबसे पहले इन्द्र यों बोले। इन्द्र ने कहा- सर्पराज स्वामी बनाने के लिये तुम व्यर्थ ही तप कर रही हो। मैं देवताओं का राजा हूँ। मैंने सौ अश्वमेध यज्ञ किये हैं और मैं स्वयं तुम्हारे सामने उपस्थित हूँ। तुम मुझे वरण कर लो। यमराज बोले- मैं सारे जगत के प्राणियों का दण्डविधान करने वाला यमराज हूँ। तुम मुझे वरण कर लो और पितृलोक में मेरी सबसे श्रेष्ठ पत्नी होकर रहो। कुबेर ने कहा- वरानने ! मैं सम्पूर्ण धन का स्वामी हूँ। तुम मुझे राजाधिराज समझो और संकर्षण के प्रति प्रीति छोड़कर शीघ्र मुझे पतिरूप में वरण कर लो। अग्निदेव बोले- विशाल लोचने ! मैं सम्पूर्ण यज्ञों में प्रतिष्ठित समस्त देवताओं का मुखरूप हूँ। अन्य सभी के प्रति वासना का त्याग करके तुम मुझे भजो। वरुण ने कहा- भामिनी ! मैं जलचरों का स्वामी एवं लोकपाल हूँ। मेरे हाथ में सदा पाश रहता हूँ। सातों समुद्रों ऐश्वर्य मेरा ही वैभव है। यह समझकर तुम मुझे पति रूप में वरण करो। सूर्य देवता बोले- हे चाक्षुषात्मजे ! मैं जगत का नेत्र हूँ। मेरी प्रचण्ड किरणें सर्वत्र व्याप्त रहती हैं। अत एव पाताल में रहने वाले अनन्त का त्याग करके तुम स्वर्ग के आभूषण रूप मुझको वरण करो। चन्द्रमा ने कहा- मैं ओषधियों का अधीश्वर, नक्षत्रों का राजा, अमृत की खान एवं ब्राह्मण श्रेष्ठ हूँ और कामिनियों को बल प्रदान करने वाला हूँ। हे गजगामिनी ! तुम मेरी उपासना करो। मंगल बोले- यह पृथ्वी मेरी माता है और साक्षात उरुक्रम भगवान मेरे पिता हैं। मेरा नाम मंगल है। हे कल्याणी ! संसार के विपुल कल्याण की कामना करने वाली तुम मुझे अपना पति बनाओ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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