गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 4
श्री बलराम और श्रीकृष्ण के द्वारा बछड़ों का चराया जाना तथा वत्सासुर का उद्धार श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! सन्नन्द की बात सुनकर महामना नन्दराज समस्त गोपगणों के साथ बड़े प्रसन्न हुए और वृन्दावन में जाने को तैयार हो गये। यशोदा, रोहिणी तथा समस्त गोपांगनाओं के साथ घोड़ों, रथों, वीर पुरुषों तथा विप्र मण्डली से मण्डित हो, परम बुद्धिमान नन्दराज दोनों पुत्र बलराम और श्रीकृष्ण सहित रथ पर आरूढ़ हो वृन्दावन की ओर चल दिये। उनके साथ गौओं का समुदाय भी था। बूढ़े, बालक और सेवकों सहित अनेक छकड़े चल रहे थे। यात्रा के समय शंख बजे और नगारों की ध्वनियाँ हुईं। बहुत-से गायक नन्दराज का यशोगान कर रहे थे । गोप वृषभानुवर अपने पत्नि के साथ हाथी पर बैठकर, पुत्री राधा को अंक में लिये, गायकों से यशोगान सुनते हुए, मृदंग, ताल, वीणा और वेणुओं को मधुर ध्वनि के साथ वृन्दावन को गये। उनके साथ भी बहुत से गोप और गौओं का समुदाय था। नन्द, उपनन्द, और छहों वृषभानु भी अपने समस्त परिकरों के साथ वृन्दावन में गये। समस्त गोपों ने अपने सेवकों सहित वृन्दावन में प्रवेश करके अलग-अलग गोष्ठ बनाये और इधर-उधर निवास आरम्भ किया। वृषभानुने अपने लिये वृषभानुपुर (बरसाना) नामक नगर का निर्माण कराया, जो चार योजन विस्तृत दुर्ग के आकार में था। उसके चारों ओर खाइयाँ बनी थीं। उस दुर्ग के सात दरवाजे थे। दुर्ग के भीतर विशाल सभा मण्डप था। अनेक सरोवर उस दुर्ग की शोभा बढ़ा रहे थे। बीच-बीच में मनोहर राजमार्ग का निर्माण कराया गया था। एक सहस्र कुंजे उस पुर की शोभा बढ़ाती थी। श्रीकृष्ण नन्द नगर (नन्द गाँव) तथा वृषभानुपुर (बरसाने) में बालकों के साथ क्रीड़ा करते हुए घूमते और गोपंगनाओं की प्रीति बढ़ाते थे। राजन! कुछ दिनों बाद सम्पूर्ण गोपों के साथ समादर-भाजन मनोहर रूप वाले बलराम और श्रीकृष्ण वृन्दावन में बछड़े चराने लगे। वे दोनों भाई ग्वाल-बालों के साथ गाँव की सीमा तक जाकर बछड़े चराते थे। कालिन्दी के निकट उसके पावन पुलिन पर सुशोभित निकुंजों और कुंजों में बलराम और श्रीकृष्ण इधर-उधर लुका छिपी के खेल खेलते और कहीं-कहीं रंगते हुए चलकर वन में सानन्द विचरते थे। उन दोनों के कटिप्रदेश में करधनी की लड़ियाँ शोभा देती थी। खेलते समय उनके पैरों के मंजीर और नूपुर मधुर झंकार फैलाते थे। बलराम के अंगो पर नीलाम्बर शोभा पाता था और श्रीकृष्ण के अंगो पर पीतपट। वे दोनों भाई हार और भुज बन्दों से भूषित थे। कभी बालकों के साथ क्षेपणों (ढ़ेलवासों) द्वारा ढ़ेले फेंकते और कभी बाँसुरी बजाते थे। कुछ ग्वाल-बाल अपने मुख से करधनी के घुँघुरूओं की-सी ध्वनि करते हुए दौड़ते और उनके साथ वे दोनों बन्धु-राम और श्याम भी पक्षियों की छाया का अनुसरण करते भागते हुए सुशोभित होते थे। सिर पर मयूरपिच्छ लगाकर फूलों और पल्लवों के श्रृंगार धारण करते थे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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