गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 8
यज्ञसीतास्वरूपा गोपियों के पूछने पर श्रीराधा का श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये एकादशी-व्रत का अनुष्ठान बताना ओर उसके विधि, नियम और माहात्म्य का वर्णन करना श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! अब यज्ञ-सीतास्वरूपा गोपियों का वर्णन सुनो, जो सब पापों को हर लेने वाला, पुण्यदायक, कामनापूरक तथा मंगल का धाम है। दक्षिण दिशा में उशीनर नाम से प्रसिद्ध एक देश है, जहाँ एक समय दस वर्षों तक इन्द्र ने वर्षा नहीं की। उस देश में जो गोधन से सम्पन्न गोप थे, वे अनावृष्टि के भय से व्याकुल हो अपने कुटुम्ब और गोधनों के साथ व्रजमण्डल में आ गये। नरेश्वर ! नन्दराज की सहायता से वे पवित्र वृन्दावन में यमुना के सुन्दर एवं सुरम्य तटपर वास करने लगे। भगवान श्रीराम के वर से यज्ञसीता स्वरूपा गोपांग्नाएँ उन्हीं के घरों में उत्पन्न हुईं। उन सबके शरीर दिव्य थे तथा वे दिव्य यौवन से विभूषित थीं। नृपेश्वर ! एक दिन वे सुन्दर श्रीकृष्ण का दर्शन करके मोहित हो गयीं और श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये कोई व्रत पूछने के उद्देश्य से श्रीराधा के पास गयीं। गोपियाँ बोली- दिव्यस्वरूपे, कमललोचने, वृषभानुनन्दिनी श्रीराधे ! आप हमें श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये कोई शुभव्रत बतायें। जो देवताओं के लिये भी अत्यंत दुर्लभ हैं, वे श्रीनन्दनन्दन तुम्हारे वश में में रहते हैं। राधे ! तुम विश्वमोहिनी हो और सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंपग भी हो। श्रीराधा ने कहा- प्यारी बहिनों! श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये तुम सब एकादशी-व्रत का अनुष्ठान करो। उससे साक्षात श्रीहरि तुम्हारे वश में हो जायेंगे, इसमें संशय नहीं है। गोपियों ने पूछा- राधिके ! पूरे वर्षभर की एकादशियों के क्या नाम हैं, यह बताओं। प्रत्येक मास में एकादशी का व्रत किस भाव से करना चाहिये ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |