गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 12
श्रीकृष्ण द्वारा कालियदमन तथा दावानल-पान श्री नारद जी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! एक दिन बलराम जी को साथ में लिये बिना ही श्री हरि स्वयं ग्वाल-बालों के साथ गाय चराने चले गये। यमुना के तट पर आकर उन्होंने उस विषाक्त जल को पी लिया, जिसे नागराज कालियने अपने विष से दूषित कर दिया था। उस जल को पीकर बहुत-सी गायें और गोपगण प्राणहीन होकर पानी के निकट ही गिर पड़े। यह देख सर्वपापहारी साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का चित्त दया से द्रवित हो उठा। उन्होंने अपनी पीयूषपूर्ण दृष्टि से देखकर उन सबको जीवित कर दिया। इसके बाद पीताम्बर को कमर में कसकर बाँध लिया। फिर वे माधव तटवर्ती कदम्ब वृक्ष पर चढ़ गये और उसकी ऊँची डाल से उस विष दूषित जल में कूद पड़े। भगवान श्रीकृष्ण के कूदने से वह दूषित जल चक्कर काटकर ऊपर को उछला। यमुना के उस भाग में कालियनाग रहता था। भँवर उठने से उस सर्प का भवन इस तरह चक्कर काटने लगा, जैसे जल में पानी के भौंरे घूमते हैं। नरेश्वर ! उस समय सौ फणों से युक्त फणिराज कालिय क्रुद्ध हो उठा और माधव को दाँतों से डँसते हुए उसने अपने शरीर से उन्हें आच्छादित कर लिया। तब श्रीकृष्ण अपने शरीर को बड़ा करके उसके बन्धन से छूट गये और उस सर्प राज की पूँछ पकड़कर उसे इधर-उधर घुमाने लगे। घुमाते-घुमाते उन्होंने उसे पानी में गिराकर पुन; दोनों हाथों से उठा लिया और तुरंत उसे सौ धनुष दूर फेंक दिया। उस भयानक नागराज ने पुन: उठकर जीभ लपलपाते हुए रोषपूर्वक माधव श्री हरि का बायाँ हाथ पकड़ लिया। तब श्री हरि ने उस महादुष्ट को दाहिने हाथ से पकड़कर उस जल में उसी प्रकार दबा दिया, जैसे गरूड़ किसी नाग को रगड़ दे। फिर अपने सौ मुखों को बहुत अधिक फैलाकर वह सर्प उनके पास आ गया। तब उसकी पूँछ पकड़कर श्रीकृष्ण उसे सौ धनुष दूर खींच ले गये। श्रीकृष्ण के हाथ से सहसा निकलकर उसने पुन: उन्हें डँस लिया। यह देख अपने में त्रिभुवन का बल धारण करने वाले श्री हरि ने उस सर्प को एक मुक्का मारा। श्रीकृष्ण के मुक्के की चोट खाकर वह सर्प मूर्च्छित हो अपनी सुध-बुध खो बैठा। तदनंतर अपने सौ मुखों को आनत करके वह श्रीकृष्ण के सामने स्थित हुआ। उसके सौ फन सौ मणियों के प्रकाश से अत्यंत मनोहर जान पड़ते थे। श्रीकृष्ण उन फनों पर चढ़ गये और मनोहर नट-वेष धारण करके नट की भाँति नृत्य करने लगे। साथ ही वे सातों स्वरों से किसी राग का अलाप करते हुए ताल के साथ संगीत प्रस्तुत करने लगे। उस समय नटराज की भाँति सुन्दर ताण्डव करने वाले श्रीकृष्ण के ऊपर देवता लोग फूल बरसाने लगे और प्रसन्नतापूर्वक वीणा, ढ़ोल, नगारे तथा बाँसुरी बजाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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