गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 2
राजा उग्रसेन के राजसूय-यज्ञ का उपक्रम, प्रद्युम्न का दिग्विजय के लिये बीड़ा उठाना और उनका विजयाभिषेक श्रीनारदजी ने कहा- एक समय की बात है- सुधर्मा में श्रीकृष्ण की पूजा करके, उन्हें शीश नवाकर प्रसन्नचेता राजा उग्रसेन ने दोनों हाथ जोड़कर धीरे से कहा। उग्रसेन बोले- भगवन् ! नारदजी के मुख से जिसका महान फल सुना गया है, उस राजसूय नामक यज्ञ का यदि आपकी आज्ञा हो तो अनुष्ठान करुँगा। पुरुषोत्तम ! आपके चरणों आपके चरणों से पहले के राजा लोग निर्भय होकर, जगत को तिनके के तुल्य समझकर अपने मनोरथ के महासागर को पार कर गये थे। श्रीभगवान ने कहा- राजन् ! यादवेश्वर ! आपने बड़ा उत्तम निश्चय किया है। उस यज्ञ से आपकी कीर्ति तीनों लोको में फैल जायगी। प्रभो ! सभा में समस्त यादवों को सब ओर से बुलाकर पान का बीड़ा रख दीजिये और प्रतिज्ञा करवाइये। समस्त यादव मेरे अंश से प्रकट हुए हें। वे लोक, परलोक-दोनों को जीतने की इच्छा करते हैं। वे दिग्विजय के लिये यात्रा करके, शत्रुओं को जीतकर लौट आयेंगे और सम्पूर्ण दिशाओं से आपके लिये भेंट और उपहार लायेंगे। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर इन्द्र के दिये सिंहासन पर विराजमान राजा उग्रसेन ने अन्धक आदि यादवों को सुधर्मा सभा में बुलवाया और परन का बीड़ा रखकर कहा। उग्रसेन बोले- जो समरांगण में जम्बूद्वीप निवासी समस्त नरेशों को जीत सके, वह इन्द्र के समान धनुर्धर मनस्वी वीर यह पान का बीड़ा चबाये। श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! यह सुनकर अन्य सब राजा तो चुपचाप बैठे रह गये, किंतु शम्बर शत्रु रुक्मिणी नन्दन महात्मा प्रद्युम्न ही सबसे पहले राजा को प्रणाम करके वह पान का बीड़ा उठा लिया। प्रद्युम्न बोले- मैं समरभूमि में जम्बूद्वीप निवासी समस्त राजाओं को जीतकर और उनसे बलपूर्वक भेंट लेकर लौट आऊँगा। यदि मैं यह कार्य न कर सकुं तो मुझे अगम्या स्त्री साथ गमन का, कपिला गौ, ब्रह्मण, गुरु तथा गर्भस्थ शिशु के वध का पाप लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |