गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 12
श्री बलराम-कवच दुर्योधन ने कहा- महामुने ! श्रीमान् गर्गाचार्य ने गोपियों को जो सब तरह से रक्षा करने वाले दिव्य कवच दिया था, आप उसे मुझ को प्रदान कीजिये। प्राडविपाक बोले- मनुष्य जल में स्न्नान करके रेशमी वस्त्र धारण करे, कुशासन पर बैठे और हाथ में कुश की पवित्री पहनकर मन्त्र का शोधन करे। तदनन्तर अच्युताग्रज भगवान बलरामजी का स्मरण करके उन्हें प्रणाम करे। फिर मन को एकाग्र करके मन्त्र रुपी कवच को धारण करे। जो भगवान गोलोक धाम के अधिपति हैं, जिनका कीर्तन परम पवित्र है, वे परमेश्वर शत्रुओं से मेरी रक्षा करें। जिनके मस्तक पर भूमण्डल सरसों की तरह प्रतीत होता है, वे भगवान भूमण्डल में मेरी रक्षा करें। हलधर भगवान सेना में और युद्ध में सदा मेरी रक्षा करें। मुसलधारी भगवान दुर्ग में और आदिदेव भगवान संकर्षण वन में मेरी रक्षा करें। यमुना के प्रवाह को रोकने वाला भगवान जल में और नीलाम्बरधारी भगवान अग्नि में निरन्तर मेरी रक्षा करें। भगवान राम वायु (आंधी) में मेरी रक्षा करें। शून्य (आकाश) में भगवान बलदेव और महान समुद्र में अनन्तवपु भगवान मेरी सदा रक्षा करें। पर्वतों पर भगवान वासुदेव मेरी रक्षा करें। घोर विवाद में हजार मस्तक वाले प्रभु, रोग में श्रीरोहिणीनन्दन तथा विपति में भगवान कामपाल मेरी रक्षा करें। धुनुकासुर के शत्रु भगवान काम (कामना) से मेरी रक्षा करे। द्विविद पर प्रहार करने वाले भगवान क्रोध से, बल्वल के शत्रु भगवान लोभ से और जरासंध के शत्रु भगवान मोह से सदा मेरी रक्षा करें। भगवान वृष्टि धुर्य प्रात:काल के समय, भगवान मथुरापुरी-नरेश पूर्वाह्न (प्रहार दिन चढ़े), गोप सखा मध्याह्न में और स्वराट् भगवान पराह (दिन के पिछले पहर) में सदा मेरी रक्षा करें। भगवान फणीन्द्र सायंकाल में तथा परात्पर प्रदोष के समय मेरी सदा रक्षा करें। कोनों में रेवती पति, दिशाओं में प्रलम्बासुर के शत्रु, नीचे यदूद्वह, ऊपर बलभद्र और दूर अथवा पास सब दिशाओं में भगवान बलदेवजी मेरी सदा रक्षा करें। भीतर से पुरुषोत्तम और बाहर से महाबल नागेन्द्र लील मेरी सदा रक्षा करें और पूर्ण परमेश्वर महान हरि स्वयं सदा सर्वदा मेरे हृदय में निवास करते हुए उत्कृष्ट रूप में सदा मेरी रक्षा करें। श्रीबलभद्रजी के इस उत्तम कवच को देव तथा असुरों के भय का नाश करने वाला, पाप रूप ईधन को जलाने के लिये साक्षात अग्निरूप और विघ्रों के घट का विनाश करने वाला सिद्धासन रूप समझे।[1] इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीबलभद्र खण्ड के अन्तर्गत श्री प्राडविपाक मुनी और दुर्योधन के संवाद में ‘श्री बलराम कवच’ नामक बारहवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दुर्योधन उवाच-
गोपीभ्य: कवचं दत्तं गर्गाचार्येण धीमता। सर्वरक्षाकरं दिव्यं देहि मह्यं महामुने ।
प्राडविपाक उवाच- स्त्रात्वा जले क्षौमधर: कुशासन: पवित्रपाणि: कृतमन्त्रमार्जन: ।
स्मृत्वाथ नत्वा बलमच्युताग्रजं संधारयेद् वर्म समाहितो भवेत् ।।
गोलोकधामाधिपति: परेश्वर: परेषु मां पातु पवित्राकीर्तन: ।
भूमण्डलं सर्षपवद् विलक्ष्यते यन्मूर्ध्नि मां पातु स भूमिमण्डले ।।
सेनासु मां रक्षतु सीरपाणिर्युद्धे सदा रक्षतु मां हली च ।
दुर्गेषु चाव्यान्मुसली सदा मां वनेषु संकर्षण आदिदेव: ।।
कलिन्दजावेगहरो जलेषु नीलाम्बुरो रक्षतु मां सदाग्नौ ।
वायौ च रामाअवतु खे बलश्च महार्णवेअनन्तवपु: सदा माम् ।।
श्रीवसुदेवोअवतु पर्वतेषु सहस्त्रशीर्षा च महाविवादे ।
रोगेषु मां रक्षतु रौहिणेयो मां कामपालोऽवतु वा विपत्सु ।।
कामात् सदा रक्षतु धेनुकारि: क्रोधात् सदा मां द्विविदप्रहारी ।
लोभात् सदा रक्षतु बल्वलारिर्मोहात् सदा मां किल मागधारि: ।।
प्रात: सदा रक्षतु वृष्णिधुर्य: प्राह्णे सदा मां मथुरापुरेन्द्र: ।
मध्यंदिने गोपसख: प्रपातु स्वराट् पराह्णेऽस्तु मां सदैव ।।
सायं फणीन्द्रोऽवतु मां सदैव परात्परो रक्षतु मां प्रदोषे ।
पूर्णे निशीथे च दरन्तवीर्य: प्रत्यूषकालेऽवतु मां सदैव ।।
विदिक्षु मां रक्षतु रेवतीपतिर्दिक्षु प्रलम्बारिरधो यदूद्वह: ।।
ऊर्ध्वं सदा मां बलभद्र आरात् तथा समन्ताद् बलदेव एव हि ।।
अन्त: सदाव्यात् पुरुषोत्तमो बहिर्नागेन्द्रलीलोऽवतु मां महाबल: ।
सदान्तरात्मा च वसन् हरि: स्वयं प्रपातु पूर्ण: परमेश्वरो महान् ।।
देवासुराणां भ्यनाशनं च हुताशनं पापचयैन्धनानाम् ।
विनाशनं विघ्नघटस्य विद्धि सिद्धासनं वर्मवरं बलस्य ।।-(गर्ग0 बलभद्र0 12। 1-12)
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