गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 18
गोपियों के उद्गार तथा उनसे विदा लेकर उद्धव का मथुरा को लौटना बर्हिष्मतीपुरी की गोपियों ने कहा– अहो ! प्रलय के समुद्र में वाराहरूपधारी महात्मा श्रीहरि ने कृपापूर्वक जिसका उद्धार किया था, उसी पृथ्वी को मारने के लिये आदिराज पृथु के रूप में वे उससे पीछे दौडे़। दयालु होकर भी वे निर्दयता के लिये उद्यत हो गये (अत: कभी कठोर होना और कभी कृपा करना इन श्रीहरि का स्वभाव ही है) ? लतारूपा गोपियाँ बोलीं- विश्व के वैद्य महात्मा धन्वन्तरि पूर्वकालमें अमृत-कलश के साथ समुद्र से प्रकट हुए, किंतु उन्होंने वह अमृत अपने हाथ से नहीं बाँटा, परंतु जब उसके लिये देवता और असुर आपस में वैर बाँधकर युद्ध के लिये उद्यत हो गये, तब कलहप्रिय श्रीहरि ने स्वयं मोहिनी नारी का रूप धारण करके वह सुधा केवल देवताओं को पिला दी। नागेन्द्र कन्यारूपा गोपियों ने कहा - दण्डक नामक महावन में इन श्रीहरि को श्रीरामरूप में देखकर शूर्पणखा इन्हें अपना पति बनाने की इच्छा से इनके पास आयी थी, किंतु लक्ष्मण सहित इन्होंने उस बेचारी के नाक-कान काटकर कुरूप बना दिया। यह कैसी निष्ठुरता है, उसने इनका क्या बिगाड़ा था ? समुद्र कन्यारूपा गोपियाँ बोलीं- जो प्रतिदिन सैकड़ों घरों में जाती और लोगों को सुख-दु:ख दिया करती है, वह चंचला लक्ष्मी इन श्रीहरि के पास न जाने स्वकीया और सुशीला बनकर कैसे टिकी हुई है ? अप्सरा रूपा गोपियों ने कहा- सखियो ! इनके प्रति प्रीति करने से रावण की बहिन को अपनी नाक और कानों से हाथ धोना पड़ा था, अत: उनकी बात छोड़ो। इन्होंने तुम्हारे ऊपर उससे भी अधिक कृपा की है (कि नाक-कान छोड़ दिये)। दिव्यरूपा गोपियाँ बोलीं- ये राजा बलि से बलि लेकर सर्वेश्वर हैं और उन्हें बाँधकर भी दयालु है, मुक्ति के नाथ होकर भी इन्होंने अपने भक्त बलि को नीचे सुतलोक में फेंक दिया। इनकी कथा से आश्चर्य होता है। अदिव्या गोपियों ने कहा- पूर्वकाल में शत-रूपा के साथ मनु शान्तभाव से तपस्या करते थे। उस समय दैत्यों ने उन्हें बहुत बाधा पहुँचायी। तत्पश्चात् उन दयानिधि श्रीहरि ने आकर उनकी रक्षा की (पहले दु:ख देना और पीछे आँसू पोंछना इनका स्वभाव है।) । सत्त्व वृतिरूपा गोपियाँ बोलीं - भक्त ध्रुव और प्रहलाद ने पहले बहुत कष्ट पाया, तदनन्तर उन्होंने कृपापूर्वक उनकी रक्षा की, हमारे ये दीनवत्सल प्रभु पहले किसी की रक्षा नहीं करते, कष्ट भुगताने के बाद ही करते हैं। रजोगुणवृतिरूपा गोपियों ने कहा- रूकमानन्द हरिशचन्द्र और अम्बरीष- इन साधु शिरोमणि नरेशों के सत्य की परीक्षा करके ही श्रीहरि ने उन्हें पुन: भागवती-समृद्धि प्रदान की (सम्भव है, हमारे भी प्रेम की परीक्षा ली जाती हो।)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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