गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 4
नन्द आदि के लक्षण; गोपीयूथ का परिचय; श्रुति आदि के गोपीभाव की प्राप्ति में कारणभूत पूर्व प्राप्त वरदानों का विवरण भगवान ने कहा- ब्रह्मन ! ‘सुबल’ और ‘श्रीदामा’ नाम के मेरे सखा नन्द तथा उपनन्द के घर पर जन्म धारण करेंगे। इसी प्रकार और भी मेरे सखा हैं, जिनके नाम ‘स्तोककृष्ण’, ‘अर्जुन’ एवं ‘अंशु’ आदि हैं, वे सभी नौ नन्दों के यहाँ प्रकट होंगे। व्रजमण्डल में जो छ: वृषभानु हैं, उनके गृह में विशाल, ऋषभ, तेजस्वी, देवप्रस्थ और वरूथप नाम के मेरे सखा अवतीर्ण होंगे। श्रीब्रह्माजी ने पूछा- देवेश्वर ! किसे ‘नन्द’ कहा जाता है और किसे ‘उपनन्द’ तथा ‘वृषभानु’ के क्या लक्षण हैं? श्रीभगवान कहते हैं- जो गोशालाओं में सदा गौंओं का पालन करते रहते हैं एवं गो-सेवा ही जिनकी जीविका है, उन्हें मैंने ‘गोपाल’ संज्ञा दी है। अब तुम उनके लक्षण सुनो। गोपालों के साथ नौ लाख गायों के स्वामी को ‘नन्द’ कहा जाता है। पाँच लाख गौओं का स्वामी ‘उपनन्द’ पद को प्राप्त करता है। ‘वृषभानु’ नाम उसका पड़ता है, जिसके अधिकार में दस लाख गौएँ रहती हैं, ऐसी ही जिसके यहाँ एक करोड़ॅ गौओं की रक्षा होती है, वह ‘नन्दराज’ कहलाता है। पचास लाख गौओं के अध्यक्ष की ‘वृषभानुवर’ संज्ञा है। ‘सुचन्द्र’ और ‘द्रोण’- ये दो ही व्रज में इस प्रकार के सम्पूर्ण लक्षणों से सम्पन्न गोपराज बनेंगे और मेरे दिव्य व्रज में सुन्दर वस्त्र धारण करने वाली शतचन्द्रानना गोप सुन्दरियों के सौ यूथ होंगे। श्रीब्रह्माजी ने कहा- भगवन ! आप दीनजनों के बन्धु और जगत के कारण (प्रकृति) के भी कारण हैं। प्रभो ! अब आप मेरे समक्ष यूथ के सम्पूर्ण लक्षणों का वर्णन कीजिये। श्रीभगवान बोले- ब्रह्माजी ! मुनियों ने दस कोटि को एक ‘अर्बुद’ कहा है। जहाँ दस अर्बुद होते हैं। उसे ‘यूथ’ कहा जाता है। यहाँ की गोपियों में कुछ गोलोकवासिनी हैं, कुछ द्वारपालिका हैं, कुछ श्रृंगार साधनों की व्यवस्था करने वाली हैं और कुछ शय्या सँवारने में संलग्न रहती हैं। कई तो पार्षद कोटि में आती हैं और कुछ गोपियाँ श्रीवृन्दावन की देख-रेख किया करती हैं। कुछ गोपियों का गोर्वधन गिरि पर निवास है। कई गोपियों कुंजवन को सजाती सँवारती हैं तथा बहुतेरी गोपियाँ मेरे निकुंज में रहती हैं। इन सबको मेरे व्रज में पधारना होगा। ऐसे ही यमुना-गंगा के भी यूथ हैं। इसी प्रकार रमा, मधुमाधवी, विरजा, ललिता, विशाखा एवं माया के यूथ होंगे। ब्रह्माजी ! इसी प्रकार मेरे व्रज में आठ, सोलह और बत्तीस सखियों के भी यूथ होंगे। पूर्व के अनेक युगों में जो श्रुतियाँ, मुनियों की पत्नियाँ, अयोध्या की महिलाएँ, यज्ञ में स्थापित की हुई सीता, जनकपुर एवं कोसल देश की निवासनी सुन्दरियाँ तथा पुलिन्द कन्याएँ थीं तथा जिनको मैं पूर्ववर्ती युग-युग में वर दे चुका हूँ, वे सब मेरे पुण्यमय व्रज में गोपीरूप में पधारेंगी और उनके भी यूथ होंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |