गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 46
छत्तीसों राग रागनियां व्रज सुंदरियों का रूप धारण करके उस यूथ में सम्मिलित हो गई थीं। जो गोपियां पूर्वकाल में श्रीराधा के साथ गोलोक के साथ भारतवर्ष में आई थीं। वे श्रीराधावल्लभ के समीप गान एवं नृत्य कर रही थीं । उन सबके बीच में वेणु से गीत गाते और त्रिलोकी को मोहित करते हुए मदनमोहन श्रीकृष्ण हरि नृत्य करने लगे। रास मंडल में बाजों, करधनियों, कंडों, कंगनों और नूपुरों की झंकारों से युक्त गीत मिश्रित शब्द की तुमिल ध्वनि होने लगी। राजन् ! देवता और देवांगनाएं श्रीहरि का रास देखकर आकाश में प्रेम वेदना से पीड़ित हो मूर्च्छित हो गई। चंद्रमा की चांदनी में चतुर चंचल श्रीकृष्ण नृत्य की गति से चलते हुए गोपांगनारूपी चंद्रावली से घिर कर उसी तरह शोभा पाते थे, जैसे विद्युन्माला से आवेष्टित मेघ सुशोभित हो रहा हो। उस पर्वत पर महान गिरिधर श्यामसुंदर ने फूलों के हार, महावर, काजल और कमलपथ आदि के द्वारा श्रीराधा का श्रृंगार किया। श्रीराधिका ने भी कुंकुम, अगुरु और चंदन आदि के द्वारा श्रीकृष्ण के मुखमंडल में सुंदर कमल पत्र की रचना की। तब मुस्काती हुई राधा ने मंद हास की छटा से युक्त भगवान के मुख की ओर देखते हुए उन्हें प्रसन्नतापूर्वक पान का बीड़ा दिया। प्रियतम के दिए हुए उस ताम्बूल को नंदनंदन श्रीहरि ने बड़े प्रेम से खाया फिर श्रीकृष्ण द्वारा अर्पित ताम्बूल को श्रीराधिका ने भी प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण किया। पतिपरायणा सती श्रीराधा ने भक्ति भाव से प्रेरित हो श्रीकृष्ण के चबाए हुए ताम्बूल को हठात लेकर शीघ्र अपने मुँह में रख लिया तब भगवान भी प्रिया के द्वारा चबाए हुए ताम्बूल को उनसे मांगा, किंतु श्रीराधा ने नहीं दिया। वे भयभीत होकर उनके चरण कमलों में गिर पड़ीं । पद्मा, पद्मावती, नंदी, आनंदी, सुखदायिनी चंद्रावली, चंद्रकला तथा वंद्या– ये गोपांगनाएं श्रीहरि की प्राणवल्लभा हैं। श्रीहरि ने वसंत ऋतु के वैभव से भरे वृंदावन में उन सबके साथ नाना प्रकार का श्रृंगार धारण किया। वे कामदेव से भी अधिक मनोहर लगते थे। कुछ गोपियाँ श्रीकृष्ण का अधरामृत पान करती थीं और कितनी ही उन परमात्मा श्रीकृष्ण को अपने बाहुपाश में बांध लेती थीं, फिर वे मदनमोहन भगवान श्रीकृष्ण गोपांगनाओं के वक्षस्थलों में लगे हुए केसरों से लिप्त होकर सुनहरे रंग के हो गए और अनुपम शोभा पाने लगे। राजेंद्र ! फिर सुंदर कदलीवन में गोपीजनों के साथ श्रीगोपी जनवल्लभ ने रास किया। नरेश्वर ! इस प्रकार रास मंडल में नित्यानंद में श्यामसुंदर के साथ गोपियों की वह हेमंत ऋतु की रात एक क्षण के समान व्यतीत हो गई । इस प्रकार रास करने के पश्चात् नन्दनन्दन श्रीहरि नंद भवन को चले गए। श्री राधा वृषभानुपुर में लौट गईं। तथा अन्यान्य गोपांगनाएँ भी अपने अपने घर को चली गईं। नृपेश्वर ! व्रज के गोप श्रीहरि की इस रास वार्ता को बिल्कुल नहीं जान सकें। उन्हें अपनी अपनी स्त्रियाँ अपने पास ही सोती प्रतीत हुईं। राधा माधव के इस उत्तम श्रृंगार चरित्र को जो लोग पढ़ते और सुनते हैं वे अक्षयधाम गोलोक को प्राप्त होंगे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |