गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 33
अपने बेटे से ऐसा कहकर वीर बल्वल दु:ख से आँसू बहाने लगा और मन ही मन खिन्न होकर बोला- हाय ! मैंने ऐसी प्रतिज्ञा क्यों की ? अहो ! सैन्यपाल के बेटे को मैंने बिना अपराध के ही मार डाला, उसी पाप से मेरा पुत्र भी मरेगा, इसमें संशय नहीं है। यदि अपने वीर पुत्र को मैं बलपूर्वक मृत्यु के मुख से छुड़ा लूंगा तो मेरे समस्त सैनिक मुझे गाली देंगे और मुझ पर हंसेंगे। दैत्यराज को इस प्रकार शोक मग्न, दु:खी अपने पुत्र के लिए खिन्न-चित्त देख कर रोष और अमर्ष से भरा हुआ सैन्यपाल हंसता हुआ बोला । सैन्यपाल ने कहा– राजन् ! पहले अपने इस पुत्र कुनंदन को शीघ्र मार डालो। इसके बाद यादवों का दानवों के साथ संग्राम होगा। दैत्येंद्र ! तुम सत्यवादी हो और यह कर्म अत्यंत दारुण है। यदि दु:ख के कारण तुम इसे नहीं करोगे तो तुम्हें नरक में जाना पड़ेगा। भूपाल ! कोसलपति राजा दशरथ ने सत्य की रक्षा के लिए श्रीराम जैसे बेटे को त्याग दिया। सत्य के बंधन में बंधे हुए हरिशचंद्र ने अपनी प्यारी पत्नी को, पुत्र को और अपने आपको भी बेच दिया था। बलि ने सत्य के कारण सारी पृथ्वी दे डाली। विरोचन ने अपना जीवन दे दिया। राजा शिबि ने अपकीर्ति का तथा दधीचि ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था। जैसे गुरु वशिष्ठ ने पृषध्न तथा राजा रन्तिदेव ने भोजन को त्याग दिया था, उसी प्रकार दैत्यराज ! तुम भी आज्ञा भंग करने वाले इस पुत्र का मोह छोड़कर इसे मार डालो। तुमने पहले जो प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने वाले बेटे और भाई को भी तत्काल मार डालूँगा, फिर दूसरे की तो बात ही क्या है ? उस देश में निवास करना चाहिए, जहाँ राजा सत्यवादी हो। उस देश में कदापि नहीं रहना चाहिए, जहाँ का राजा मिथ्यावादी हो । श्रीगर्गजी कहते हैं– सैन्यपाल की बात सुन कर बल्वल ने खिन्न चित्त हो अपने उस पुत्र का वध करने के लिए उसी को आज्ञा दे दी। तदनन्तर बल्वल दु:खी हो यादवों के सामने गया। इधर सैन्यपाल ने राजकुमार के आगे उसके पिता की दी हुई आज्ञा सुना दी। यह सुनकर कुनंदन ने उसे शीघ्र ही इस प्रकार उत्तर दिया । राजपुत्र बोला– सेनापते ! तुम पराधीन हो, इसलिए तुम्हें राजा की आज्ञा का अवश्य पालन करना चाहिए। परशुरामजी ने अपने पिता की आज्ञा से माता का मस्तक काट लिया था। सैन्यपाल ! मैं निश्चिंत हूँ। मैंने धर्म कार्य का पालन कर लिया है। अब मुझे मृत्यु से कोई भय नहीं है। तुम मुझे शतघ्नी में झोंक दो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |