गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 32
सैन्यपाल के पुत्र को देखकर प्रचण्ड शासक बल्वल ने बहुत फटकारा और वेगपूर्वक उसके मुख पर भुसुण्डी मार दी। सैन्यपाल के पुत्र का वध हुआ देख सब दैत्य भयभीत हो उठे। सैन्यपाल संग्राम में अपने पुत्र को मार दिया गया सुनकर दु:ख से आतुर हो हाथों से माथा पीटता हुआ रथ से गिर पड़ा। वह पुत्र के दु:ख से दु:खी हो अत्यंत विलाप करने लगा– हा पुत्र ! हा वीर ! मुझ वृद्ध पिता को छोड़कर रणक्षेत्र में शतघ्नी के मार्ग से तुम स्वर्ग को चले गए। मेरा दर्शन तक नहीं किया। बेटा ! तुम राजा के शासन से युद्ध किए बिना ही कहाँ चले गए ? इस तरह विलाप करता हुआ सैन्यपाल समरांगण में रो रहा था। तब मंत्रियों के पुत्रों ने शोकमग्न सैन्यपाल के सामने आकर कहा । मंत्री पुत्र बोले- सेनापते ! तुम तो शूरवीर हो, रणभूमि में आकर रोदन न करो। शोक करने पर भी जो मर गया, वह तुम्हारे पास लौट कर नहीं आएगा। मृत्यु जीवधारियों के पीछे जन्मकाल से ही लगी रहती है। वही इस समय प्राप्त हुई है। धीर पुरुष मृत्यु के लिए शोक नहीं करते। मूर्ख लोग ही मृत पुरुष के लिए सदा शोक में डूबे रहते हैं। कोई गर्भ में मर जाते हैं, किसी की जन्म लेते ही मृत्यु हो जाती है, कोई बचपन में और कोई जवानी में काल कवलित हो जाते हैं, कोई कोई ही बुढ़ापे में मरते हैं। कोई शस्त्र से, कोई अस्त्र से, कोई दु:ख से और कोई ऊंचे स्थान से गिरने के कारण मृत्यु के वशीभूत होते हैं। दैववश कर्म के अधीन हुए सभी जीव एक दिन मृत्यु को प्राप्त होंगे। कौन किसका पिता और पुत्र है ? अथवा कौन किसकी माता या प्रियतमा पत्नी है। विधाता कर्म के अनुसार प्राणियों में संयोग और वियोग कराया करता है। संयोग में बड़ा आनंद मिलता है और वियोग में प्राण–संकट की घड़ी आ जाती है। ऐसी अवस्था सदा मूर्खों की ही हुआ करती है। आत्माराम पुरुष निश्चय ही हर्ष– शोक के वशीभूत नहीं होते हैं। तुम दु:खी होकर जब अपने प्राणों का त्याग कर रहे हो तो आत्माघाती बनोगे। इसका परिणाम यह होगा कि नरक में पड़ोगे और फिर जन्म लोगे, इसमें संशय नहीं है। इसलिए इस महासमर में तुम श्रेष्ठ यादव वीरों के साथ युद्ध करो। क्षत्रिय वृत्तिवाले लोगों के लिए धर्म युद्ध से बढ़कर परम कल्याण का साधन कोई दूसरा नहीं है। जो समरांगण में धर्म युद्ध करते हुए शत्रु के सामने वीर गति को प्राप्त होते हैं, वे समस्त लोकों को लांघकर भगवान विष्णु के परम धाम में चले जाते हैं । श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन् ! उन दैत्यों के इस प्रकार समझाने पर सैन्यपाल ने सब शोक त्याग दिया तथा रोष से भर कर वहाँ आए हुए समस्त वीरों का निरीक्षण किया। संग्राम भूमि में सब पर दृष्टिपात करके रोष से जलते हुए सैन्यपाल ने शीघ्र ही यह बात कही । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |